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जासूसी के आरोप से बरी ISRO के पूर्व वैज्ञानिक नम्बी नारायण मामले की SC अगले हफ्ते सुनवाई करेगा


इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नम्बी नारायण जासूसी कांड में बरी हो चुके हैं, लेकिन ये मामला एक बार फिर गरमाने वाला है. हालांकि, इस बार विवाद जासूसी को लेकर होने की संभावना है. दरअसल, सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जासूसी कांड में घिरे पूर्व वैज्ञानिक नम्बी नारायण को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया था. इसके बाद एक कमेटी बनी थी, जिसने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है. अब इसी रिपोर्ट के आधार पर आगे की सुनवाई होगी. जानकारी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते इस मामले पर सुनवाई शुरू कर सकता है.

नम्बी नारायण इसरो के क्रायोनिक डिविजन में काम करते थे. 1994 में उन पर दूसरे देशों को इसरो के सीक्रेट्स बेचने का आरोप लगा था.

  1. 1994 में इसरो में जासूसी कांड की बात सामने आई. आरोप लगा कि नम्बी नारायण, डी. शशिकुमार समेत चार लोगों ने इसरो की सीक्रेट्स पाकिस्तान समेत कई दूसरे देशों को बेचे.
  2. अक्टूबर 1994 में केरल पुलिस ने मालदीव की महिला मरियम राशिदा को पकड़ा. पुलिस ने आरोप लगाया कि इसरो के वैज्ञानिकों ने मालदीव की महिलाओं के जरिेए इसरो के रॉकेट के सीक्रेट दूसरे देशों को बेचे.
  3. बाद में इस मामले की जांच इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) को सौंपी गई. बाद में इसमें सीबीआई की एंट्री भी हो गई. दो साल बाद 1996 में सीबीआई ने बताया कि वैज्ञानिकों पर फर्जी आरोप लगाए. कोई सीक्रेट्स किसी दूसरे देश को नहीं बेचे गए. इस आधार पर सभी को रिहा कर दिया गया.
  4. 1998 में केरल की सीपीएम सरकार ने मामले की जांच दोबारा कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जांच कराने से मना कर दिया. साथ ही नम्बी नारायण को 1 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया. बाद में नम्बी नारायण ने राष्ट्रीय मानवाधिकार का दरवाजा खटखटाया और 10 लाख रुपए मुआवजे की मांग की. मानवाधिकार आयोग ने 2001 में नम्बी नारायण को 10 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया.
  5. राज्य सरकार ने मानवाधिकार आयोग के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. जहां मानवाधिकार फैसले को सही ठहराया गया. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वो नम्बी नारायण को 50 लाख रुपए का मुआवजा दे.

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने तो 1998 में ही नम्बी नारायण को जासूसों के आरोपों से बरी कर दिया था. लेकिन ये मामला लंबा खींचता रहा. सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फिर फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि जासूसी मामले में नम्बी नारायण को गिरफ्तार किया जाना गैरजरूरी था. साथ ही ये भी कहा कि ये मामला मानसिक प्रताड़ना से भी जुड़ा है. इसलिए केरल सरकार नम्बी नारायण को 50 लाख रुपए का मुआवजा दे. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि केवल मुआवजा देना काफी नहीं है. इस मामले में केरल पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जांच भी की जानी चाहिए. इसके लिए कोर्ट ने तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस डीके जैन ने की.

अब किस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई?
जस्टिस डीके जैन कमेटी ने करीब दो साल से भी ज्यादा वक्त तक इस मामले में केरल सरकार और केरल पुलिस की भूमिका की जांच की. इस पर कमेटी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी है. इसी रिपोर्ट पर अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी.