, नई दिल्ली। दुनिया के 90 देशों के मंत्रियों, शिक्षाविदों और सरकारी प्रतिनिधियों के सामने विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ ऐलान किया कि भारत वैश्विक मंच पर अपनी बड़ी भूमिका निभाने को तैयार है। दुनिया के समक्ष जिस तरह से खाद्य संकट पैदा होने की संभावना जताई जा रही है, जयशंकर ने इस समस्या से उबरने में भी पूरी मदद देने का आश्वासन दिया लेकिन यह तभी संभव होगा जब विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के मौजूदा नियमों में कुछ बदलाव हो।
यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर भारत पर दबाव बनाने वाले यूरोपीय लाबी को भी विदेश मंत्री ने दो टूक जवाब दिया कि यह उनके लिए चेतावनी है कि वो एशिया में जो हो रहा है, उस पर भी नजर डालें। चीन का नाम लिये बगैर उसके आक्रामक रवैये की तरफ इशारा करते हुए जयशंकर ने कहा कि, पिछले एक दशक से एशिया की स्थिति अच्छी नहीं है। देश की राजधानी में चल रहे रायसीना डायलॉग में विदेश मंत्री जयशंकर का लहजा भारतीय कूटनीति के बढ़ते आत्मविश्वास को बताता है।
जयशंकर के साथ इस कार्यक्रम में शामिल कई विदेश मंत्रियों व दूसरे गणमान्य कूटनीतिज्ञों के सवाल का जवाब दे रहे थे। भारत की यात्रा पर आई नार्वे की विदेश मंत्री एनीकेन हुईतफेल्त ने यूक्रेन का मुद्दा उठाया और भारत की प्रतिक्रिया जाननी चाही, जयशंकर का जवाब था कि भारत की स्थिति स्पष्ट है, हम वहां युद्ध की समाप्ति और बातचीत की प्रक्रिया फिर से शुरु करने का समर्थन करते हैं। लेकिन इसके बाद जयशंकर ने उन्हें यह याद दिलाया कि जब हम संप्रभुता को आदर देने की बात करते हैं तो याद रखना चाहिए कि एक वर्ष पहले ही हमने एक पूरी मानवता को भयंकर संकट में छोड़ दिया। सभी देश अपने हितों और भरोसे में सामंजस्य बनाने में जुटे हैं और इसमें कुछ गलत नहीं है।
जयशंकर यहां भारत के पाकिस्तान व चीन के साथ तनाव के बाद यूरोपीय देशों के सुझावों की तरफ इशारा कर रहे थे। आगे जयशंकर ने कहा कि, एशिया में पिछले 10 वर्षों से जो रहा है उस पर यूरोप ने कभी ध्यान नहीं दिया। जो समस्या अभी यूरोप में है वह आगे एशिया में भी पैदा हो सकती है। इसके बाद जयशंकर ने चुटकी लेते हुए कहा कि, “एशिया में जब कानून सम्मत विश्व व्यवस्था का उल्लंघन किया जाता है तो हमें यह सलाह दी जाती है कि हम उन देशों के साथ कारोबार बढ़ाएं। कम से कम हम यूरोपीय देशों को यह सलाह नहीं दे रहे।”
जयशंकर ने यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद दुनिया में आए इनर्जी और खाद्य संकट का जिक्र करते हुए कहा कि ”दुनिया में खाद्यान्नों की कमी हो रही है और खाने पीने की चीजें महंगी हो रही हैं। भारत यहां काफी मदद कर सकता है। हम कृषि उत्पादों और खास तौर पर गेहूं का निर्यात बढ़ा सकते हैं। हम कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से गेहूं की वैश्विक कमी को पूरा करने में मदद करें। यहां कुछ नियमों को लेकर दिक्कत है कि हम अपने भंडार से कितना निर्यात कर सकते हैं। इस बारे में डब्लूटीओ के नियम हैं। उसमें बदलाव करना होगा। यह सामान्य स्थिति नहीं है इसिलए उम्मीद है कि डब्लूटीओ इस नियम पर पुनर्विचार करेगा। हम इस क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान कर सकते हैं और इसके लिए हम तैयार हैं।’