नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। भारत में 17 फीसद बच्चों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। यह बात सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) के शोधकर्ताओं द्वारा सैम ह्यूस्टन विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आई है। सैम हाउस्टन स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर संतोष कुमार ने ई-मेल के माध्यम से बताया ने बताया कि यह भारत के लिए चिंता का विषय है। इसका असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। हमने अध्ययन में देखा कि प्राइमरी स्कूल में पढ़ने में कुशलता और एकाग्रता का असर वजन कम होना है। वजन कम होने से कॉग्नेटिव लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
वजन का असर मानसिक विकास पर
इस स्टडी में वजन के असर का आकलन उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर भी किया गया। अध्ययन में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में टेस्ट स्कोर में कम अंक मिले थे, जो दर्शाता है कि बच्चों में जन्म के समय शारीरिक विकास पूरी तरह न हो पाने का असर उनकी बौद्धिक क्षमता पर भी पड़ता है। जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार जन्म के समय बच्चे के वजन में आई सिर्फ 10 फीसदी की वृद्धि, 5 से 8 वर्ष की आयु में उसके संज्ञानात्मक परीक्षण स्कोर में 0.11 अंक की वृद्धि कर सकती है।