- नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने पर सहमत से पहले विपक्षी खेमे के बीच विपक्ष की अगुवाई करने को लेकर भारी खींचतान शुरू हो गई है। राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्षी दलों को साथ लाने की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल शुरू होने के बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की 15 जून को विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाने की घोषणा ने कांग्रेस को असहज कर दिया है। टीएमसी के इस दांव को कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी सियासत को मजबूत करने की बजाय दीदी की विपक्ष के प्रमुख नेता के तौर पर राष्ट्रीय छवि को चमकाने की कोशिश मान रही है।
विपक्षी राजनीति की डोर दीदी के हाथों में देने को तैयार नहीं कांग्रेस
कांग्रेस जाहिर तौर पर विपक्षी राजनीति की डोर दीदी के हाथों में देने के लिए तैयार नहीं और इसीलिए उनकी बैठक में उसके सहयोगी दलों के मुख्यमंत्री खुद शरीक न हों इस कोशिश में जुट गई है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ममता की बैठक में नहीं आएंगे तो द्रमुक प्रमुख तमिलनाडु के सीएम स्टालिन के भी 15 जून की बैठक में शामिल होने के संकेत नहीं है।
सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने सियासी गोलबंदी शुरु
राष्ट्रपति चुनाव के कार्यक्रमों का ऐलान होने के तत्काल बाद से ही सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने सियासी गोलबंदी के साथ उम्मीदवार तय करने की मशक्कत शुरू कर दी है। सोनिया गांधी ने कोविड संक्रमण की चुनौती से जूझने के दौरान भी समय की पाबंदी को देखते हुए ममता बनर्जी, शरद पवार, स्टालिन, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन से लेकर विपक्षी खेमे के कई प्रमुख नेताओं को फोन कर राष्ट्रपति पद के लिए साझा उम्मीदवार की पहल शुरू की। साथ ही कहा कि खराब सेहत के चलते वे राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्षी नेताओं से चर्चा की जिम्मेदारी सौंप रही हैं। इसके अनुरूप खड़गे ने भी तत्काल विपक्षी नेताओं से वार्ता की पहल शुरू कर दी लेकिन इसी बीच ममता बनर्जी ने शनिवार को अचानक विपक्षी मुख्यमंत्रियों समेत 23 नेताओं को पत्र लिख 15 जून को दिल्ली में आमंत्रित करते हुए राष्ट्रपति चुनाव पर बैठक बुलाने की घोषणा कर डाली।
विपक्षी दलों की अगुवाई करना चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस को यह नागवार लगा ओर पार्टी ने दीदी का नाम लिए बिना साफ कहा कि सोनिया गांधी ने इस दिशा में पहले ही पहल शुरू कर दी है और देश हित में यह समय की मांग है कि हम अपने मतभेदों से ऊपर उठकर खुले दिमाग से चर्चा करें। कांग्रेस ने यह भी इशारा कर दिया कि राष्ट्रपति चुनाव में अन्य विपक्षी दलों के साथ बातचीत की प्रक्रिया की अगुवाई वही करेगी।
ममता की बैठक से दूरी बनाएंगे कांग्रेस सहयोगी दलों के सीएम
सूत्रों के अनुसार इसी रणनीति के तहत पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के मुख्यमंत्रियों को दीदी की बैठक से दूरी बनाए रखने के लिए सहमत कर रही है। हालांकि विपक्षी एकता को नुकसान नहीं हो इसका ख्याल रखा जाएगा और इन पार्टियों के दूसरी पंक्ति के प्रतिनिधि ममता की बैठक में भेजे जाएंगे। उद्धव ठाकरे की जगह शिवसेना के किसी प्रतिनिधि को भेजे जाने की पार्टी नेता संजय राउत ने घोषणा कर रविवार को इसका संकेत भी दे दिया। वैसे ममता का यह दांव वामपंथी दलों को भी रास नहीं आया है और वे इसे विपक्षी एकता के लिहाज से नुकसानदेह मान रहे हैं। माकपा प्रमुख सीताराम येचुरी और भाकपा महासचिव डी राजा का मत है कि किसी दल को इस तरह बिना सलाह -मशविरा किए एकतरफा बैठक बुलाने जैसे कदम उठाने से परहेज कर चाहिए क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता के लिहाज से यह ठीक नहीं है।
शरद पवार को विपक्ष का साझा उम्मीदवार बनाने की कोशिश
पवार को विपक्ष का साझा उम्मीदवार बनाने के लिए सहमत करने की कोशिश राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी खेमे की अंदरूनी रस्साकशी के बीच एकजुटता के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के लिए उन्हें सहमत करने की कोशिश शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार इस दिशा में पहली शुरूआत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से की गई जब राष्ट्रपति चुनाव को लेकर फोन पर विपक्षी रणनीति को लेकर उन्होंने पवार से बातचीत की। बताया जाता है कि इसी दौरान सोनिया ने पवार से कहा कि वे यदि विपक्ष का संयुक्त् उम्मीदवार बनते हैं तो एनडीए की राह आसान नहीं होगी और विपक्षी खेमा एकजुट होगा। सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने भी पवार से मुलाकात में उनसे राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनने का अनुरोध किया।
बिना सियासी नफा-नकसान के आकलन मैदान में नहीं उतरेंगे पवार
हालांकि देश की राजनीति के सबसे धुरंधरों में गिने जाने वाले पवार राष्ट्रपति चुनाव के गणित को देखते हुए बिना सियासी नफा-नुकसान का आकलन किए मैदान में उतरने का जोखिम उठाएंगे इसमें संदेह है। वैसे सियासत में नामुंकिन कुछ भी नहीं और यदि विपक्षी खेमा पवार को उम्मीदवार बनने के लिए सहमत कर सकता तो यह विपक्षी एकजुटता के लिहाज से बड़ी कामयाबी होगी। ममता बनर्जी से लेकर चंद्रशेखर राव और स्टालिन से लेकर हेमंत सोरेन सभी क्षेत्रीय क्षत्रप खुशी-खुशी शरद पवार के नाम पर सहमत होंगे क्योंकि केसीआर और ममता सरीखे नेता राष्ट्रपति पद के लिए किसी कांग्रेस नेता को विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं हैं।
बीजू जनता दल और वाइएसआर कांग्रेस की भूमिका होगी अहम
राष्ट्रपति चुनाव में बीजू जनता दल और वाइएसआर कांग्रेस सियासी तराजू का संतुलन मोड़ने में सबसे अहम साबित होंगे और विपक्षी खेमा पवार के जरिए इन दोनों दलों को साधने की कोशिश करेगा। वैसे अभी तक के संकेतों से साफ है कि बीजेडी और वाइएसआर कांग्रेस सत्ताधारी एनडीए के उम्मीदवार के पक्ष में ही रहेंगे।