नई दिल्ली, । ईडब्ल्यूएस कोटे में आरक्षण पिछले काफी समय से चर्चा का विषय बना हुआ था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को वैध बताया है। ईडब्ल्यूएस कोटे की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की है।
संविधान का उल्लंघन नहीं EWS आरक्षण
ईडब्ल्यूएस कोटे की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने की। पीठ के सामने ये सवाल था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है? क्या मोदी सरकार ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण देकर जो अन्य लोगों के साथ आगे बढ़ने का मौका दिया है, वो गलत है? सरकार का कहना था कि इस कदम में कुछ गलत नहीं है।
साल 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और शुरू हुई सुनवाई
साल 2019 में लागू किए गए ईडब्ल्यूएस कोटा को तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके समेत कई याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान का उल्लंघन बताते हुए अदालत में चुनौती दी थी। देश के कई हिस्सों में इस मुद्दे पर याचिकाएं दायर की गई थीं। इसके बाद केंद्र सरकार के अनुरोध पर सभी याचिकाओं को एक साथ सुप्रीम कोर्ट में सुनने का निर्णय लिया गया। इसके लिए साल 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और 13 सितंबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पादरीवाला की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की थी।
EWS आरक्षण के विरोध में रखी गईं ये दलील
ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘पिछले दरवाजे से’ आरक्षण की मूल अवधारणा को खत्म करने का प्रयास बताते हुए संविधान का उल्लंघन बताया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा, यदि वो इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है।
सरकार ने EWS आरक्षण के पक्ष में ये कहा
तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने 103वें संविधान संशोधन विधेयक का बचाव करते हुए कहा था कि इसके जरिए दिया गया आरक्षण अलग है। उन्होंने साफ किया कि ये सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया है। इसलिए ये कहना सही नहीं होगा कि संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। इसके तहत किसी दूसरी श्रेणी के आरक्षण को कम नहीं किया गया है।
EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने EWS आरक्षण मामले में पक्ष और विपक्ष दोनों की सभी दलीलों को सुना। ये सुनवाई सात दिनों तक चली और 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। 8 नवंबर को चीफ जस्टिस रिटायर हो रहे हैं, ऐसे में बेंच का ये फैसला हमेशा याद रखा जाएगा। इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा एस रवींद्र भट, दिनेश माहेश्वरी, जेबी पारदीवाला और बेला एम त्रिवेदी शामिल थे।