- G7 समिट में गेस्ट देश के रूप में शामिल होते हुए भारत ने रविवार को अभिव्यक्ति की आजादी पर जारी ‘ओपन सोसायटी स्टेटमेंट’ पर हस्ताक्षर किया है. इस ज्वाइंट स्टेटमेंट में G7 सहित चार गेस्ट देशों के इस ‘डेमोक्रेसी 11’ समूह ने अपने आप को ‘ओपन सोसाइटी’ घोषित करते हुए इस बात पर जोर दिया कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों लोकतंत्र की रक्षा करती है और लोगों को डर और उत्पीड़न से मुक्त रहने में मदद करती है”
‘ओपन सोसायटी स्टेटमेंट’: किन बातों पर है जोर?
अभिव्यक्ति की आजादी पर इस ज्वाइंट स्टेटमेंट पर G7 देशों (अमेरिका,UK,कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली ,जापान) के अलावा चार गेस्ट देश- भारत,दक्षिण कोरिया ,ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका ने हस्ताक्षर किया है. इस बार के G7 समिट का आयोजन कर रहें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन बोरिस ने इस समूह को ‘डेमोक्रेसी 11’ का नाम दिया.
ज्वाइंट स्टेटमेंट में कहा गया “हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं जहां हमारी स्वतंत्रता और लोकतंत्र को सत्तावाद, चुनावी हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार ,आर्थिक नियंत्रण ,सूचना के हेरफेर, दुष्प्रचार ,ऑनलाइन नुकसान, राजनीति से प्रेरित इंटरनेट शटडाउन, मानवाधिकार का उल्लंघन और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है.
‘ओपन सोसायटी स्टेटमेंट'”सभी के लिए मानवाधिकार,ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों, जैसा कि मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा और अन्य मानवाधिकार संस्थाओं द्वारा सुनिश्चित किया गया है. साथ ही किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध ताकि हर कोई समाज में पूरी तरह और समान रूप से भाग ले सकें.”ज्वाइंट स्टेटमेंट में यह भी शामिल है कि “हरेक नागरिक को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में हिस्सा लेने, शांतिपूर्ण इकट्ठा होने, संगठन बनाने और जवाबदेही तथा पारदर्शी शासन व्यवस्था का अधिकार है”
‘ओपन सोसायटी स्टेटमेंट'” सिविल स्पेस और मीडिया स्वतंत्रता की रक्षा करके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना, सभा और संघ बनाने की स्वतंत्रता देना,धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता और नस्लवाद सहित सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करके वैश्विक स्तर पर खुले समाजों को मजबूत करना”” साइबर स्पेस का प्रयोग लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए हो”: पीएम
प्रधानमंत्री कार्यालय(PMO) के अनुसार पीएम मोदी ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया कि “साइबर स्पेस लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक अवसर बना रहना चाहिए, उसे नष्ट करने का नहीं”.
हाल में भारत अपने इंटरनेट प्रतिबंधों और कठोर IT नियमों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर में है. विशेषकर जम्मू कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनने के बाद वहां साल भर से ज्यादा इंटरनेट बंद करने और नए IT नियमों द्वारा सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्मों पर कठोर नियंत्रण के कारण भारत की आलोचना वैश्विक स्तर पर राइट एक्टविस्टों ने की है. टेक जायंट ट्विटर ने अपने दिल्ली स्थित ऑफिस पर दिल्ली पुलिस के छापे के बाद उसे “अभिव्यक्ति की आजादी पर संभावित खतरा” बताया था.ज्वाइंट स्टेटमेंट के ड्राफ्ट को लेकर भारत की आपत्ति
मई की शुरुआत में G7 देशों के विदेश मंत्री लंदन में साथ आयें थे और G7 समिट के एजेंडे पर बातचीत की थी.विदेश मंत्रियों के द्वारा 7 मई को जारी साझा बयान में ‘ओपन सोसायटी’ शीर्षक का अलग सेक्शन था जिसमें इंटरनेट शटडाउन की कड़ी आलोचना की गई थी और उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण इकट्ठा होने के अधिकार के खिलाफ बताया गया था.
हालांकि भारत ने G7 देशों के विदेश मंत्रियों के उस साझा बयान पर हस्ताक्षर नहीं किया था लेकिन भारत की तरफ से उसमें निमंत्रण पर शामिल हो रहे विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने ‘ओपन सोसायटी’ पर दिए अपने वक्तव्य में यह इशारा जरूर किया था कि भारत की राय G7 देशों के उस ड्राफ्ट स्टेटमेंट से अलग है. उन्होंने अपने वक्तव्य में फेक न्यूज़ और डिजिटल मैनिपुलेशन के खतरे पर जोर दिया.
G7 समिट में रविवार को जारी ज्वाइंट स्टेटमेंट पर भी अंत समय तक बदलाव को लेकर सदस्य देशों और गेस्ट देशों के बीच बातचीत चलती रही. भारत की आपत्ति इंटरनेट शटडाउन को लेकर ड्राफ्ट स्टेटमेंट के कड़े रुख के लिए था क्योंकि भारत अमेरिका के उलट लॉ एंड ऑर्डर तथा सांप्रदायिक हिंसा के मामले में इंटरनेट प्रतिबंध को जरूरी मानता है.
G7 समिट के आउटरीच सेशन के दूसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी इसके अलावा “बिल्डिंग बैक ग्रीनर: क्लाइमेट एंड नेचर” नामक सेशन में शामिल हुयें. इसमें उन्होंने संबंधित वैश्विक गवर्नेंस संस्थाओं के अलोकतांत्रिक तथा असमान प्रकृति को रेखांकित किया.