धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने चेहरे चुन कर पहले चरण का अपना परिचय दे दिया है। भाजपा ने अपेक्षा के अनुसार वही किया जो वह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कर चुकी है। सत्ता विरोधी रुझान को भांपते हुए चेहरे बदलने का काम। भाजपा ने यहां पुरानी पीढ़ी को ससम्मान मार्गदर्शक बनाने का काम भी किया है।
भाजपा के उभरे नए समीकरण
प्रदेश में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ मिल कर पहली बार पांच वर्ष तक चलने वाली भाजपानीत सरकार देने वाले और सक्रिय नेता प्रेम कुमार धूमल चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि वह आलाकमान को लिख कर दे चुके हैं। कभी न हारने वाले धर्मपुर के नेता और जयराम ठाकुर के बाद वरीयता क्रम में पहले मंत्री ठाकुर महेंद्र सिंह तथा कर्नल इंद्र सिंह नई पीढ़ी के लिए स्थान बनाते हुए चुनावी दौड़ से बाहर हो गए हैं। 11 विधायकों के टिकट काटे गए हैं जबकि दो मंत्रियों के क्षेत्र बदले गए हैं।
कांग्रेस ने नहीं किया प्रयोग
80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रत्यक्षत: अध्यक्ष चुनने वाली कांग्रेस ने कोई प्रयोग नहीं किया, कोई रणनीति नहीं की और सुरक्षित पथ पर चलते हुए पुराने लोगों पर विश्वास किया। कांग्रेस ने प्रयोग से हाथ खींचे और 80 या इसके अधिक या कम वसंत देख चुके नेताओं की ताकत पर भरोसा किया। मंडी जिले के ठाकुर कौल सिंह और सोलन वाले कर्नल धनीराम शांडिल तो वयोवृद्ध हैं। वयोवृद्ध नेता ठाकुर सिंह भरमौरी के टिकट पर पर्दा भी आश्चर्यजनक है। भाजपा से गए पूर्व प्रदेशाध्यक्ष पंडित खीमी राम को बंजार से अवश्य टिकट दिया है। भाजपा में विधायकों के टिकट कटने पर चंबा से शिमला तक असंतोष है जिसे नेता स्वाभाविक और क्षणिक बता रहे हैं।
युवा वर्ग की नाराजगी के बीच रुका किन्नौर का टिकट
कांग्रेस में युवाओं का प्रयोग न करने से नाराज युवा कांग्रेस ने तो बाकायदा कहा कि वह चुनाव से दूर हो जाएंगे, प्रचार नहीं करेंगे। आलाकमान के घुलनशील प्राधिकार का प्रमाण यह है कि युवा कांग्रेस की धमकी के बाद किन्नौर के विधायक का टिकट रोक लिया गया है क्योंकि युवा नेता निगम भंडारी वहीं से दावेदार हैं।
कांग्रेस 22 सीटों पर करेगी माथापच्ची
एक परिचय यह है कि कांग्रेस लंबे समय से टिकटों पर मंथन कर रही है जबकि भाजपा ने रात को संसदीय बोर्ड की बैठक की, सुबह 62 की सूची जारी कर दी। अब भी 22 क्षेत्र ऐसे हैं जहां कांग्रेस को माथापच्ची करनी है। भाजपा के पास ऐसी सीटें छह ही हैं जहां घोषणा अभी शेष है। कांग्रेस को अपेक्षा है कि जिन 22 सीटों पर अभी उसे फैसला लेना है वहां उन लोगों को भी समायोजित किया जा सकता है जो भाजपा के प्रयोगों के दायरे में आएंगे। भाजपा जहां अब तक अनिर्णय की शिकार है, उन सीटों की संख्या इसलिए कम है क्योंकि विभिन्न सर्वेक्षणों के अतिरिक्त राज्य इकाई की बात अधिक सुनी गई है। प्रत्यक्ष रूप से यह अपने स्थानीय नेतृत्व पर भरोसे का द्योतक है। कांग्रेस में क्योंकि ध्रुव बहुत हैं और चमकते भी हैं इसलिए वहां यह सरोकार भी हैं कि चेहरा चुनना ऐसी क्रिया है जिसका फल उस समय महत्वपूर्ण हो जाता है जब मुख्यमंत्री बनने के लिए संख्याबल की बात आती है।
भाजपा ने दिया यह संदेश
संदेश तो भाजपा ने यह देना चाहा है कि रिवाज बदलने की राह में जो भी बाधा बनेगा, उसे हटाया जाएगा। दो मंत्रियों के स्थान बदल दिए हैं। राकेश पठानिया वन, खेल एवं युवा सेवाएं मंत्री हैं उन्हें फतेहपुर भेजा गया है। शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज को कसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र दिया गया है। तर्क यह है कि वह वहां भाजपा को मजबूत करेंगे। लेकिन वहां सुरेश भारद्वाज कितने सहज होंगे, यह वही जानते हैं। राकेश पठानिया फतेहपुर में सहज नहीं हैं। उनका सारा ध्यान नूरपुर पर था और फतेहपुर में उनके सामने कांग्रेस के भवानी सिंह पठानिया हैं जबकि आम आदमी पार्टी से पुराने भाजपाई राजन सुशांत हैं। सोचने वाला बिंदु यह है कि जिनकी सर्वेक्षण रपट अपने हलकों में खराब है जहां उन्होंने पांच साल कुछ न कुछ विकास कार्य किए, तो दूसरे हलके में कहां से अच्छी हो जाएगी। पर यही प्रयोग शायद कुछ अच्छा परिणाम ले आएं, ऐसा भाजपा का विचार है। वैसे स्थान परिवर्तन 2017 के चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल और उनके समय के ताकतवर मंत्री रविंद्र रवि का भी हुआ था।
उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश की तरह हिमाचल में भी आशा
भारतीय जनता पार्टी को आशा है कि हिमाचल प्रदेश में भी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की तरह हर पांच वर्ष के पश्चात सरकार बदलने का रिवाज बदलेगा। इसमें संदेह भी नहीं है कि अटल रोहतांग सुरंग, बल्क ड्रग पार्क, एम्स बिलासपुर, मेडिकल डिवाइस पार्क, वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी योजनाओं को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश आकर जनता को सौंपा। बीते पांच वर्षों में केंद्र से प्रदेश चलाने के लिए भी पैसा मिलता रहा। राहुल गांधी इस चुनाव से दूर प्रतीत हो रहे हैं। वह भारत को जोड़ने में व्यस्त हैं। कांग्रेस को संभालने का काम छराबड़ा निवासी प्रियंका गांधी वाड्रा पर है, ऐसा आभास इससे हो रहा है कि अगली जनसभाएं राहुल की नहीं, प्रियंका की ही नियोजित की जा रही हैं। सत्ता विरोधी भाव को भुनाने की तैयारी में बैठी कांग्रेस के साथ आरंभिक झटके ये लगे कि उसके दो कार्यकारी अध्यक्ष भाजपा में चले गए। एकाध और भी जा सकता था किंतु किसी का सम्मान भी बरकरार रखना था। कुलमिला कर भाव यह निकला कि जनता कांग्रेस की ओर देख भी रही हो, कांग्रेस स्वयं भाजपा की ओर देखती रही।
नहीं दिख रही अब धार
आम आदमी पार्टी जिस जोश के साथ पंजाब की जीत का साग और मक्की की रोटी खाकर आई थी, वह हिमाचल प्रदेश के पहाड़ पर जल्दी ही पचा लिया गया प्रतीत होता है। कुछ प्रत्याशियों की घोषणा उन्होंने की है पर कतिपय कारणों से वह धार अब दिखाई नहीं दे रही जो पहले थी। बहरहाल अब प्रतीक्षा ‘फंसी हुई’ टिकटों के बाहर आने की है।