- नई दिल्ली. हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के किन्नौर जिले के निगुलसरी में हुए हादसे ने एक बार फिर जख्म हरे कर दिए हैं. पहाड़ों में आए दिन आ रही आपदाओं के कारण सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है. पिछले महीने से अब तक देखें तो हिमाचल में ही आधा दर्जन छोटे-बड़े मामले चट्टान गिरने या भूस्खलन (Landslide) के सामने आए हैं. इन घटनाओं पर पर्यावरणविदों का कहना है कि प्राकृतिक आपदा होने के साथ ही इसमें मानवीय भूल का भी अहम योगदान है.
यूसेक (उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर) के डायरेक्टर और जाने माने पर्यावरणविद, वैज्ञानिक महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट ने न्यूज18 हिंदी से बातचीत में कहा कि पहाड़ों में पिछले कुछ दिनों से लगातार हादसों की सूचनाएं मिल रही हैं. इसमें जनहानि और मालहानि दोनों ही हो रही है. ऐसा होना संभव भी है क्योंकि पहाड़ हो या कोई भी ऐसी जगह जहां प्रकृति (Nature) अपनी जटिल संरचना में है, वहां बरसात के चार महीने जिन्हें हमारे बुजुर्ग चौमासा बोलते थे, काफी खतरे भरे रहते हैं.
बिष्ट कहते हैं कि वैज्ञानिक रूप से देखें तो बरसात के मौसम की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है कि पहाड़ (Mountain) का क्षेत्र जो इतने दिनों से सूखा हुआ था बारिश के बाद वहां तरावट या नमी आ जाती है. वहीं जरूरत से ज्यादा नमी आने पर वह बहने लगता है. ऐसे में पहाड़ी मुहानों पर सैकड़ों-हजारों सालों से जमी हुई मिट्टी, धूल, पत्थर और मलबे में ज्यादा पानी आने से या ओवर सेचुरेशन होने और मिट्टी के अंदर पानी का दवाब पैदा होने से चट्टान या पहाड़ का मलबा टूटकर या ढहकर गिरने लगता है.
इसके अलावा पहाड़ों में सामूहिक रूप से लोगों का आना-जाना भी पहाड़ी क्षेत्र में इस विचलन को बढ़ाता है. बारिश से नमी प्राप्त और गीली हुई मिट्टी के आसपास गाड़ियों की आवाजाही से भी भूस्खलन जैसी घटनाओं को घटने के लिए बल मिलता है.