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Power Crisis: पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था के लिए समस्या बन रहा बिजली संकट


 इन दिनों देश मांग अनुरूप बिजली आपूर्ति के मोर्चे पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। माना जा रहा है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद जुलाई तक लोगों को बिजली कटौती से मुक्ति नहीं मिलेगी। देश में बीते 26 अप्रैल को बिजली की मांग 201 गीगावाट तक पहुंच गई थी। जून-जुलाई तक इसके बढ़कर करीब 220 गीगावाट हो जाने का अनुमान है। देश में बिजली की वर्तमान कमी कोई इस वजह से नहीं है कि यहां बिजली उत्पादन क्षमता हमारी जरूरत के मुकाबले कम है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय के अनुसार देश में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता 400 गीगावाट की है। स्पष्ट है कि अभी भी बिजली की अधिकतम मांग बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता से 50 प्रतिशत ही है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि फिर देश में बिजली का संकट क्यों है?

 

संकट का मूल कारण : हमारी जरूरत की अधिकांश बिजली का उत्पादन कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से होता है। इसमें पूरक तौर पर नाभिकीय, गैस और अक्षय ऊर्जा की भी मदद ली जाती है। देश में बिजली संकट का असली कारण तापीय बिजली घरों में कोयले की कमी होना और मांग बढ़ना है। हालांकि कोयला उत्पादन करने के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है। दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कोयले का भंडार भारत में है। इसके बावजूद उन्हें जरूरत के अनुसार कोयला क्यों नहीं मिल पा रहा? सेंट्रल इलेक्टिसिटी अथारिटी की रिपोर्ट के अनुसार इस समय देश में 173 तापीय बिजली संयंत्रों में से 108 में कोयले का स्टाक अत्यंत कम है। इनमें कोयले का कुल औसत भंडार निर्धारित मानक के 25 प्रतिशत से भी नीचे है। पिछले वर्ष अक्तूबर में भी इन संयंत्रों में कोयले की कमी हो गई थी, परंतु लगता है कि तब स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया गया। देश के प्रमुख तापीय बिजली संयंत्रों की अगर बात करें तो इनमें से राजस्थान के सात में से छह, बंगाल के सभी छह, उत्तर प्रदेश के चार में से तीन, मध्य प्रदेश के चार में से तीन, महाराष्ट्र के सभी सात, आंध्र प्रदेश के सभी तीन संयंत्रों में कोयले का स्टाक बेहद निम्न स्तर पर पहुंच गया है। इन बिजली घरों का कहना है कि उन्हें कोयला मिलने में देरी हो रही है।