नई दिल्ली/जयपुर/राजगढ़ । लगभग 250 वर्ष पूर्व अलवर के राजा प्रताप सिंह का ग्रीष्मकालीन ठिकाना रहा राजगढ़ इन दिनों छोटे-छोटे प्राचीन मंदिरों के ध्वस्त होने के कारण सुर्खियों में है। इस मामले में दो अधिकारियों व सभापति को निलंबित करके प्रकरण की जांच भिवाड़ी इंटीग्रेटेड विकास प्राधिकरण (बीडा) के आयुक्त रोहिताश्वर को सौंप दी है। अब जांच से ही यह राज खुलेगा कि तोड़फोड़ के पीछे गहरी साजिश थी या मानवीय भूल, अतिक्रमण हटाना उद्देश्य था या बदले की भावना से की गई राजनीतिक कार्रवाई। मास्टर प्लान के अनुसार सड़क चौड़ी करने की मंशा थी या अधिकारियों की तानाशाही।
दरअसल, अधिकारियों के निलंबन के बाद भी कई सवाल अनुत्तरित हैं। ऐसे में जांच से स्पष्ट होगा कि राजस्व रिकार्ड में सड़क की चौड़ाई पहले तय थी या मकान पहले के बने हुए थे। रिकार्ड में चौड़ाई निर्धारित होने के बाद अगर सड़क की जगह पर निर्माण हुआ है तो सरकार मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होगी। मास्टर प्लान में भी अगर किसी सड़क की चौड़ाई बढ़ाने का प्रस्ताव हो तो पहले से निर्मित वैध निर्माण बिना मुआवजा दिए नहीं ढहाए जा सकते। इसकी पूरी प्रक्रिया है। निर्माण वैध हुए तो गहलोत सरकार मुआवजा देने के लिए बाध्य होगी।