गोरखपुर, । विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी गठबंधन की सीधी भिड़ंत में छोटे दलों का छिटपुट रहा जनाधार भी खिसक गया। दलीय ध्रुवीकरण के बीच जनता ने उन्हें नकारते हुए न केवल हाशिये से भी बाहर रखा, बल्कि किसी की जमानत भी नहीं बचने दी। अपने विवादित और भड़काऊ बयानों के लिए पहचाने जाने वाले डा. असदउद्दीन ओवैसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) हो या फिर बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी। दोनों के गठबंधन और कई सीटों पर डा. मोहम्मद अयूब की पीस पार्टी का साथ भी कमाल न कर सका और इन पार्टियों का मत प्रतिशत बढऩे की बजाय घट गया।
पीस पार्टी कुछ हजार पर सिमटी तो एआइएमआइएम सैकड़ों में
वर्ष 2017 के चुनाव में एआइएमआइएम ने सात और पीस पार्टी ने 13 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। पीस पार्टी को तीन तो एआइएमआइएम को एक सीट पर दस हजार से अधिक मत मिले थे। दोनों पार्टियों ने न केवल परिणाम प्रभावित किया बल्कि अपना मत प्रतिशत भी बढ़ाया। इस बार एआइएमआइएम और जन अधिकार पार्टी ने गठबंधन किया, जिसमें कुछ जिलों में पीस पार्टी भी शामिल हुई। गठबंधन ने कुल 16 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। नेताओं ने सभाएं भी कीं, लेकिन जीतना तो दूर प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई। अपने सबसे अधिक जनाधार वाले संतकबीर नगर जिले में पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. मोहम्मद अयूब तक जमानत तक नहीं बचा सके।
खलीलाबाद में था पीस पार्टी का बड़ा आधार
खलीलाबाद सीट से वर्ष 2012 में विधायक बनने वाले डा. अयूब को 2017 में 42 हजार मत मिले थे, लेकिन 2022 में घटकर 19299 ही रह गए। 2017 में जिस मेंहदावल में 25 हजार से अधिक मत मिले थे, इस बार वहां 1405 वोट ही मिले। एआइएमआइएम को सिद्धार्थनगर की इटवा सीट पर 3443 तो डुमरियागंज में 4352 मत ही मिले। बांसी में पीस पार्टी लड़ी और 971 वोट ही मिले। शोहरतगढ़ से दोनों पार्टियों ने प्रत्याशी नहीं उतारा, जबकि 2017 में वहां चार-पांच हजार मत मिले थे।