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World Malaria Day: दिल्ली में मलेरिया से मौत के आंकड़ों में बड़ा खेल


नई दिल्ली। आर्थिक रूप से कमजोर श्रीलंका भले ही मलेरिया मुक्त हो चुका हो, लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में मलेरिया उन्मूलन अब भी बड़ी चुनौती है। नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के तहत यह दावा जरूर किया जाता है कि दिल्ली में मलेरिया से मौतें नहीं होतीं, लेकिन हकीकत इससे परे है।

चिकित्सकीय रूप से सत्यापित मौत पंजीकरण के आंकड़े यह बताते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी में अब भी हर वर्ष औसतन 87 लोग मलेरिया के कारण असमय मौत के शिकार होते हैं। जिसमें 45 वर्ष से कम उम्र के युवा भी शामिल हैं। ऐसे में मलेरिया की रोकथाम के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रम पर सवाल उठना लाजमी है।

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दिल्ली में अक्टूबर 2021 में डेंगू, चिकनगुनिया व मलेरिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों को अधिसूचित बीमारियों की श्रेणी में शामिल किया गया। इसके तहत मच्छर जनित बीमारियों से पीड़ित हर मरीज की सूचना सरकारी नोडल एजेंसी को देना अनिवार्य है। ताकि आसपास के इलाके में मच्छरों की रोकथाम के लिए अभियान चलाया जा सके।

5 साल में मलेरिया से सिर्फ एक मरीज की मौत

हैरानी की बात यह है कि मच्छर जनित बीमारियों को अधिसूचित बीमारी की श्रेणी में शामिल करने के बाद मलेरिया के मामले दर्ज होना पहले की तुलना में भी कम हो गया है। नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम व दिल्ली नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 से वर्ष 2021 के बीच पांच वर्षों में मलेरिया से सिर्फ एक मरीज की मौत हुई। इसके अलावा पिछले वर्ष भी एक मरीज की मौत हुई थी।

इस लिहाज से छह वर्षों में मलेरिया से दिल्ली में सिर्फ दो मरीजों की मौत हुई। दूसरी ओर इस दावे को चिकित्सकीय रूप से सत्यापित मृत्यु पंजीकरण के आंकड़े गलत साबित करते हैं। मृत्यु पंजीकरण की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 से वर्ष 2021 के बीच दिल्ली में 436 लोगों की मौत का कारण मलेरिया बीमारी बनी। इससे स्पष्ट है कि मलेरिया की रोकथाम के लिए चलाए जाने वाले अभियान और जमीनी हकीकत में अंतर है।