चंदौली। विधान सभा का चुनाव हो या लोकसभा चुनाव विभिन्न पार्टियों के चुनावी भाषण के दौरान किसानों का उत्थान जबान पर जरूर होता है लेकिन आखिर क्या कारण है कि किसानों का उत्थान जबानों पर अधिक और धरातल पर कम दिखाई पड़ता है। सोमवार को किसानों के विभिन्न संगठन अपने साथ वादा खिलाफी को लेकर अपने क्षेत्र में विरोध पर रहे। वैसे किसानों के संगठनों का राजनीतिक झुकाव होना उनके आंदोलन को कमजोर कर देता है। यदि वह किसानों के उत्थान की समीक्षा कर एक जुट होकर बगैर किसी पार्टी के प्रति झुकाव न रखते हुए किसी एक पार्टी को मतदान करें तो उनके मतदान की ताकत का एहसास निश्चित ही पार्टियों को होगी। जनपद की बात की जाय तो किसी समय यहां धान गेहूँ उगाना कठिन विषय था। कुछ दशकों पहले तक लोग सरेसर, धूस, आलमपुर संिहत जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में रेह उड़ते हुए जरूर देखे होंगे। जो अनुपयोगी भूमि होने का उदाहरण था। यही नहीं इसका प्रभाव शादी व्याह पर भी पड़ता था लेकिन चन्दौली जनपद को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि मानते हुए पं० कमलापति त्रिपाठी ने विभिन्न क्षेत्रों के विकास करने के साथ ही जनपद में नहरों का जाल बिछाने का कार्य किया और देखते ही देखते खेतों की भूमि अच्छी फसल पैदा करने लगी। फलस्वरूप किसानों को खेती से पूर्ण आजीविका ही नहीं व्यापार का स्वरूप भी मिला। वर्तमान में यदि धान की फसल के खरीद की बात की जाय तो जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार ने जिले में इस बार २३ लाख ५० हजार क्विंटल धान खरीदने का लक्ष्य रखा था। अनुमानित आय के अनुसार यदि संपूर्ण धान की बिक्री हो जाती तो किसानों के खाते में ४५५ करोड़ आ जायेंगे लेकिन अभी तक लक्ष्य नहीं पूरा हो पाया है। आज किसान अपने धान की बिक्री के लिए मसक्कत कर रहे हैं जो उस दावे को पुख्ता कर रहा है जिसमें चुनावी भाषण में तो किसानों के चहुंमुखी उत्थान की बात तो की जाती है लेकिन धरातल पर नहीं दिखाई पड़ती।