चंदौली। सब दिन की भांति आज भी हम लोग एकत्रित हुए है,ं इतना मौसम खराब प्रकृति ने अपने स्वभाव में बहुत कठोरता ले आ रखा है, और उसके साक्ष्य झेलते हुए हमलोग फिर भी एकत्रित हुए हैं, अपने आप के विचार मंथन में जो कुछ सप्ताह के बाद हम लोगों को अपने-अपने भूले भटके विचारों को व्यवहारों को याद दिलाने के लिए एकत्रित होता हूं, बन्धुओं हमलोगों में जो हीन भावनाएं जो आ जाता है, वह हमलोगों को बहुत पीछे ढकेल देता है। हमलोगों को चाहिए हीन भावनाओं से, एक को न आने दे और हीन भावनाये आने से हम अपने आप में बहुत ग्लानि करते है, और उस ग्लानि से ऐसे ग्लानि के संग कर जाते हैं, जैसे की हमे कहीं उठने में उत्साहित होने में हर तरफ से हमे पीछे ढकेल देता है, हम में हीन भावना आखिर होता क्यो है, गरीबी के कारण वस्त्र मलीनता के कारण या चित्त दुषिता के कारण या ऐसे कोई हमसे कृत्य हो जाता है जो अप करणीय है, नहीं करने योग्य है तो ये बन्धुओं हम सब साधारण हैं हमलोग सामान्य जीवन जीते है, सामान्य तरह से रहते हैं इसलिये हमलोगों में बिल्कुल हीनभावना नहीं होना चाहिए। यह तो उन लोगों को जो सब कृत्य में लगे है भी है, फिर भी उनका प्रदर्शन ऐसा होता है कि वह बहुत सबल है बहुत उचे विचार वाले हैं बहुत उचे कृत्य वाले है, बड़े ऊचे कर्म वाले है और बड़े अच्छे सभी के साथ व्यवहार करते हैं मगर उनका सब कुछ प्रदर्शन-प्रदर्शनी ही मात्र रहता है। उक्त बातें परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कही। उन्होंने कहा कि बन्धुओं छोटे आदमी सामान्य आदमी बहुत ऊचा हो जाते है, बहुत ऊचा चले जाते है और जो अपने को बहुत ऊचाई पर रख रखा है, वह अब उसका अन्त हो जाता है। वह नीचे की तरफ गिरता है, बन्धुओं नीचे की तरफ उसकी वेग होने लगता है। इसी तरह से आप हम जो भी हम एक मित्रों का संघ है उनसे, मैं यही कहूॅगा कि अपने में हीन भावनाओं की आगमन न हो चाहे वस्त्र मलीनता के कारण चाहे भोज्य, ऐसे पदार्थ ग्रहण करने के कारण चाहे छूआ.छूत के कारण या किसी कर्तव्य हीनता के कारण या और भी जिस किसी तरह से की यह महान दु:ख के देने वाला होता है, बन्धुओं आप छोटे से स्थान से उठकर बड़े से बड़े स्थान को प्राप्त कर सकते हैं आपको बहुत गुंजाइश है, बढऩे की समझता हूं कि आप अपनी हीनभावनाओं के कारण इन सब कार्यो को करने में अपने को हिचकते है, संकोच करते हैं और उस संकोच के चलते बहुत से आप आये हुए अच्छे गुणों को हाथ से चले जाने देते है, हम लोगों का भी अपने साधु पद्घति में भले हमारे साधु नहीं मेरे पास आये हमारे पास सीखने के लिए मै बहुत बार इन्हे बुलाया कहा बार-बार मगर नहीं आये मेरे पास। मैं खुद अपनी कथा कहता हूं आप से मैं बहुत मामूली सा व्यक्ति मैं बहुत अपने भिक्षाटन इत्यादि मांग कर साधु होने के जीवन में बहुत वर्षो तक इधर.उधर बहुत से गंगा नदियों और तलहटियों के किनारे घूमता पर दिन भर मुझे भीक्षा नहीं मिलता रहा। परमपूज्य अघोरेश्वर बाबा कीनाराम के व्यक्तित्व व कृतित्व के बाबत श्रद्घालुओं को बताते हुए पूज्य मां श्री सर्वेश्वरी सेवा संघ जलीलपुर पड़ाव के संस्थापक पूज्य गुरुदेव बाबा अनिल राम जी का कहना है कि गुरु के लिए सर्वश्र न्यौछावर कर देना भी कम है। सौजन्य-बाबा कीनाराम स्थल, खण्ड-१