चंदौली। परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कहा कि दूसरी डाल पर उसने देखा कि यह मेरे शरीर पर इसने वीट कर दिया और उठाकर उस कमान से अपने रखे हुए शाख में तीर और कमान से उसे चला दिया और हंस घायल होकर गिर पड़ा। काग वहां से उड़ गया। घायल अवस्था में पड़े हुए और पंक्षी उसके पत्नी से जाकर कहें कि ऐसे अवस्था गिरा पड़ा है, पत्नी ने उससे कहा कि मैं यही कहती थी कि जिसके कुल और शील नहीं जानते वह आपको पीड़ा और वेदना दिया। इसी तरह से बन्धु हम लोग बहुत से अपने जो जीवन में परेशारियां उठाते है, मित्र के साथ से नहीं मित्र बने हुए लोग है या वह जिसका मैं कुल शील न जान कर उनकी मीठी-मीठी बातों में फंस कर हम भावुकता में आकर इन सब कृत्यो को करके महान दु:खो को प्राप्त करते है यह मत सोचिये की गृहस्थ ही ठग होता है साधु भी ठग होता है, महान ठग होता है और यह तो दूसरे को ठगने के लिये है, हर तरह का भेष भी बनाता है भूषा भी पहनता है, दूसरों को प्रलोभन देने की हर तरह की कृत्य भी करता है। जटा जूट भगवान को मानने के लिये थोड़ ही न है, वस्त्र रंगना, पहनना इत्यादिक-इत्यादिक कृत्य जो है सिर्फ उसी के लिए ईश्वर को मनाने के लिये थोड़े ही यह तो चपरास्य है कि ऐसे ही बिना वेश के भीख नहीं मिलता इसलिये भेष बनाता है। भीख के लिये भीख के ही आश्रित हो तो उसके लिए भेष बनाना ही है मगर बन्धु जो भेष बनाना ही है। मगर बन्धु जो वेष बनाकर भी हम उस वेष को अपमान करता है उस वेष को हमने दुषित करते हैं उस वेश को हम उस साधु वेश को हम उसकी पवित्रता को हम बहुत घृणित स्थानों में खड़ा करना चाहते है। उस अपमान के बदले बन्धु उस प्राणी का आत्मा बहुत पद्दलित हो जाता है और जिसकी पद्दलित हो जाता है वह व्यक्ति चलते फिरते मृतक तुल्य होता है उसके ह्दय जैसे कपड़ा निचोड़े वह वैसे ही निचूड़ता रहता है कही उसका मन नहीं लगता है, कही उसकी चित्त नहीं लगता है, कही स्थिरता नहीं मिलता हैं, पुत्र से पौत्र से पत्नी से बन्धु से बान्धवों से सबसे वह कलह का पात्र हो जाता है। उसका सारा मित्र भी उसके दुश्मन हो जाते है, कथा कथित मित्र जो मित्र है, एक साथ मित्र है वह तो आप के उनमें न कोई चढ़ाव होता है न उतार होता है, किसी तरह का वह आप के हीन भावनाओं को उत्पन्न कभी नहीं करते है, और इसके बदले में वह आप से कुछ नहीं चाहते है कि इसके बदले में मुझे मिल जाये तो बन्धु हम लोग अपने जीवन के बारे में बाते कर रहा हूं कि हमे भी इस साधु समाज में, महात्मा समाज में, गृहस्थ समाज में, अनेक तरह के लोगों से मुझे भी मुलाकात है, मै चाहता हूं कि इनकी मैं कुछ जो कुछ हो सके भलाई करू, मगर वह अपने दूसरे अर्थ में हमसे समझ लेना चाहते है सर्वेश्वरी सेवा संघ जलीलपुर पड़ाव के संस्थापक पूज्य गुरुदेव बाबा अनिल राम जी का कहना है कि गुरु की पूजा अनवरत होनी चाहिए। सौजन्य- कीनाराम स्थल खण्ड-५