संजय मिश्र, नई दिल्ली। पांच राज्यों में हार के बाद कांग्रेस को राजनीतिक संकट से निकालने के लिए पार्टी कार्यसमिति ने अध्यक्ष सोनिया गांधी को संगठन के हर स्तर पर फौरी बदलाव करने की खुली छूट भले दे रखी हो, मगर हाईकमान को इन राज्यों में बदलाव को अंजाम देने में भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को चुनाव से ठीक पहले कमान सौंपने के नाकाम प्रयोग के मद्देनजर इन राज्यों के फेरबदल में नेतृत्व कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता। कांग्रेस के लंबे सियासी संघर्ष की राह को देखते हुए स्टारडम वाले बड़े चेहरों की जगह युवा चेहरों को तरजीह दी जा रही है। मणिपुर तथा गोवा कांग्रेस में हुए बदलाव इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
कांग्रेस की करारी चुनावी पराजय के तुरंत बाद सोनिया गांधी ने पांचों राज्यों-उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के प्रदेश अध्यक्षों का इस्तीफा तत्काल मांग लिया था। लेकिन तीन हफ्ते बाद पिछले दो दिनों में गोवा और मणिपुर के संगठनात्मक बदलाव को ही अमली जामा पहनाया गया है। अब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में संगठन के नए ढांचे को स्वरूप देना नेतृत्व के लिए न केवल अहम बल्कि बेहद चुनौतीपूर्ण है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की विदाई की कीमत पर नवजोत सिंह सिद्धू पर दांव लगाने को लेकर असंतुष्ट खेमे के नेताओं ने सवाल भी उठाया था। मगर नेतृत्व ने तब इसकी परवाह नहीं की थी। इसी तरह उत्तराखंड में हरीश रावत को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपने और गणेश गोदियाल को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के फैसले पर भी पार्टी में मशविरा नहीं किए जाने की बात हार की समीक्षा के लिए बुलाई गई कार्यसमिति की बैठक में उठी थी।