नई दिल्ली,। वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ हर साल दुनिया में इससे होने वाली मौतों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। दक्षिण एशिया के देश, खासकर भारत में वायु प्रदूषण से लोगों की जिंदगी एचआईवी/एड्स, सिगरेट-शराब पीने और यहां तक कि आतंकवाद से भी ज्यादा प्रभावित हो रही है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) 2022 रिपोर्ट के अनुसार विश्व में वायु प्रदूषण से जीवन प्रत्याशा औसतन 2.2 वर्ष कम हो गई है। लेकिन भारत में जीवन प्रत्याशा विश्व औसत से चार गुना ज्यादा घटी है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा जैसे राज्यों में प्रदूषण की वजह से लोगों की उम्र 9 साल से ज्यादा कम हुई है। इतना ही नहीं, इससे भारत में हर साल सवा लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि अगर विकसित देश प्रयास करें तो सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में लोगों की उम्र 7 साल से ज्यादा उम्र बढ़ जाएगी। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के 11 नवंबर तक की डेटा के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में इस साल वायु प्रदूषण के सबसे खराब दिनों की संख्या पिछले 5 साल की तुलना में ज्यादा है।
बच्चे हो रहे बीमार, प्रजनन क्षमता पर भी असर
भोपाल एम्स के सांस-फेफड़ा रोग विशेषज्ञ (पल्मोनोलॉजिस्ट) डॉ. अभिषेक गोयल ने बताया कि दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषण के कारण हर तीसरे बच्चे को अस्थमा की समस्या है। मध्य प्रदेश या अन्य राज्यों में भी इसका प्रभाव है, लेकिन कम। पिछले कुछ सालों के दौरान देखने में आया है कि बच्चे से लेकर बड़े, सबमें वाहन, इंडस्ट्री, ध्रूमपान तथा अन्य वायु प्रदूषणों से बड़ी-बड़ी बीमारियां होने लगी हैं। अस्थमा, सांस लेने में दिक्कत, फेफड़े की परेशानी के साथ कैंसर तक के मामले बढ़े हैं। कुछ साल पहले तक हमारे ओपीडी में आने वाले 80-90 फीसदी मरीज 50 साल से ज्यादा के होते थे, लेकिन अब 60 फीसदी मरीज 30-50 साल के बीच के आते हैं। उनमें सांस व अस्थमा से जुड़ी समस्या ज्यादा देखी जा रही है।
रायपुर मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर और छाती-फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके पंडा ने बताया कि अब बच्चों में भी अस्थमा और ब्रोंकाइटिस (सांस नली में सूजन) की समस्या आने लगी है। अस्थमा से जुड़ी जो आनुवांशिक बीमारी बड़े उम्र के बाद दिखाई देती थी, वह अब कम उम्र में ही दिखने लगी है। इसके अलावा बुजुर्गों में प्रदूषण से फेफड़ा स्थायी रूप से इंफेक्टेड होने के केस भी सामने आने लगे हैं, जिसे सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) कहा जाता है। युवाओं में प्रदूषण के कारण इनफर्टिलिटी बढ़ी है, जिससे उनकी संतान पैदा करने की क्षमता प्रभावित होती है।
सिगरेट, शराब से ज्यादा खतरनाक हवा का प्रदूषण
एक्यूएलआई के वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार वायु प्रदूषण का प्रभाव सेहत पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। इससे प्रभावित देशों में लोगों की उम्र औसतन 2.2 वर्ष कम होती है, जबकि सिगरेट पीने से उम्र 1.9 साल घटती है। शराब पीने वालों की जीवन प्रत्याशा 8 महीने, असुरक्षित पानी से 7 महीने, एचआईवी-एड्स से 4 महीने, मलेरिया से 3 महीने और विवाद-आतंकवाद से औसतन 9 दिन घटती है।
दिल्ली में इस साल 154 दिन बहुत घातक स्तर वाले
सीपीसीबी की 11 नवंबर 2022 की डेटा के अनुसार इस साल दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के बहुत खराब स्तर वाले 154 दिन रहे हैं। इससे पहले 2017 में इससे ज्यादा खराब स्तर वाले दिन थे। दिल्ली-एनसीआर में इस साल सिर्फ 160 दिन वायु प्रदूषण का स्तर संतोषजनक रहा। अच्छे और साफ हवा स्तर वाले सिर्फ तीन दिन रहे हैं। इससे पहले 2016 में 193 दिन हवा का स्तर बहुत खराब रहा है। 2017 में 164 दिन, 2018 में 156 दिन, 2019 में 139 दिन, 2020 में 91 दिन, 2021 में 117 दिन और 2022 में अब तक 154 दिन वायु प्रदूषण का स्तर बेहद ही नुकसानदायक व खतरनाक रहा है।
52% जीवन कम होने में हिस्सेदारी दक्षिण एशिया की
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) 2022 रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में वायु प्रदूषण एक महामारी के रूप में बढ़ रही है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव दक्षिण एशिया में है। भारत के साथ बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल सबसे प्रदूषित देश हैं। यहां दुनिया की एक चौथाई आबादी रहती है। रिपोर्ट में बताया गया कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में जितने लोगों की जीवन प्रत्याशा कम हुई है, उसमें 52 फीसदी दक्षिण एशिया के हैं। रिपोर्ट के अनुसार पीएम2.5 के स्तर में सुधार होने से लोगों की सेहत में सुधार होगा और उनकी आयु लंबी होगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में वायु प्रदूषण में सुधार होने से लोगों की जिंदगी पांच साल बढ़ जाएगी। बांग्लादेश में यह 6.9 वर्ष, पाकिस्तान में 3.75 वर्ष, चीन में 2.5 वर्ष, नाइजेरिया में 1.8 वर्ष, इंडोनेशिया में 1.2 वर्ष, ब्राजील में 0.5 वर्ष और अमेरिका में 0.2 वर्ष तक बढ़ जाएगी।
8 साल में बढ़े प्रदूषण में 44 प्रतिशत भारत का
दुनिया में 2013 से जितना प्रदूषण बढ़ा है, उसमें 44 फीसदी भारत की हिस्सेदारी है। यहां औसत कण प्रदूषण का स्तर 53 µg/m3 (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से बढ़कर 56 µg/m3 तक पहुंच गया है। भारत में सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र उत्तर भारत का गंगा का मैदानी क्षेत्र है, जहां आधे अरब की आबादी रहती है। 2020 तक इस एरिया में पीएम2.5 का औसतन वार्षिक संकेद्रण 76.2µg/m3 था। दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। यहां पीएम2.5 का वार्षिक संकेद्रण 107 µg/m3 से अधिक है। महाराष्ट्र में प्रदूषण का स्तर 2000 के बाद 68.4 फीसदी और मध्य प्रदेश में 77.2 फीसदी बढ़ा है। इस कारण इन प्रदेशों में भी जीवन प्रत्याशा 2.2 वर्ष तक घट गई है। दुनिया में सबसे प्रदूषित हवा बांग्लादेश की है। वहां 2020 में पीएम2.5 का स्तर 75.8 µg/m3 था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश से 12-15 गुना ज्यादा है। पाकिस्तान में 2020 में पीएम2.5 का स्तर 47.1 µg/m3 था।
प्रदूषण से विश्व में 4.7 लाख नवजात की मौत
अमेरिकी संस्थान हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) की एयर क्वालिटी एंड हेल्थ अन सिटीजः स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2022 के अनुसार 2010 से 2019 के बीच जिन 20 शहरों में पीएम2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) का स्तर बढ़ा है, उनमें 18 भारत के हैं। भारत में 2019 के दौरान सिर्फ वायु प्रदूषण से 1.16 लाख बच्चों की मौत हुई। नाइजीरिया में 67869, पाकिस्तान में 56519, इथियोपिया में 22857, तंजानिया में 12662, कांगों में 11100 और बांग्लादेश में 10496 नवजातों की मौत की वजह वायु प्रदूषण थी। 2019 में विश्व में 4.78 लाख नवजातों ने वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवाई।
आबादी-इंडस्ट्री बने प्रदूषण का कारण
एक्यूएलआई की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में पिछले दो दशकों के दौरान औद्योगीकरण, आर्थिक विकास के साथ जनसंख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। भारत और पाकिस्तान में वाहनों की संख्या वर्ष 2000 के दशक की तुलना में चार गुना बढ़ गई है। बांग्लादेश में यह तीन गुना हुई है। इसके अलावा भारत, पाक, नेपाल और बांग्लादेश में 1998 से 2017 के बीच जीवाश्म ईंधनों से बिजली उत्पादन तीन गुना हो गया है। फसलों के ठूंठ, पराली जलाना, ईंट भट्टे और अन्य इंडस्ट्रियल गतिविधियों के कारण भी बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण फैला है।
भारत की 100 फीसदी आबादी प्रभावित
विश्व बैंक के अनुसार भारत की 100 फीसदी आबादी (करीबन 1.4 अरब लोग) हवा में हानिकारक स्तर पर मौजूद पीएम 2.5 कणों के प्रभाव में जी रही है। अनुमान है कि 2019 में प्रदूषित हवा से भारत में 17 लाख लोगों की जान गई। 2017 में वायु प्रदूषण के कारण हुई घातक बीमारियों के कारण 30 से 78 अरब डॉलर तक का श्रम प्रभावित हुआ, जो भारत की जीडीपी का 0.3-0.9 फीसदी है। भारत में ईंधन के आम स्रोत कोयला, पेट्रोलियम उत्पाद और लकड़ी चारकोल और फसल के अवशेष हैं।
समाधानः चीन ने दिखाया सुधार, दो साल जीने बढ़ी
वायु प्रदूषण को लेकर काम करने वाली संस्थाओं के आकलन में यह सामने आया है कि जहां विश्व स्तर पर प्रदूषण बढ़ा है, वहीं चीन ने सुधार दिखाया है। वहां 2013 से 2020 के दौरान प्रदूषण साल दर साल घटा है। 2013 से 2020 के बीच यहां वायु प्रदूषण में 39.6 फीसदी कमी आई है। 2019 से 2020 के बीच ही यहां 9 फीसदी गिरावट दर्ज हुई। बीजिंग में 2013 में वायु प्रदूषण का स्तर 85 μg/m3 था जो 2020 के दौरान घटकर 55 μg/m3 हो गया। इससे यहां जीवन प्रत्याशा 2 साल बढ़ गई है। चीन में वायु प्रदूषण कम करने के लिए युद्ध स्तर पर योजना बनाकर काम किया जा रहा है।
भारत ने भी बनाया है स्वच्छ वायु कार्यक्रम
भारत ने भी 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया है। इसमें 2024 तक कणीय प्रदूषण को 2017 के स्तर से 20-30 फीसदी नीचे लाने का लक्ष्य है। इससे भारत में जीवन प्रत्याशा 1.6 वर्ष बढ़ जाएगी। दिल्ली वालों की औसत आयु 3.2 साल बढ़ेगी।
एक्यूएलआई, एयर क्वालिटी प्रोग्राम्स और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के निदेशक क्रिस्टा हेसेन कॉप्फ ने रिपोर्ट में कहा कि डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार अगर सभी देश वायु प्रदूषण के स्तर पर कंट्रोल कर लें तो हर व्यक्ति की आयु 5 साल तक बढ़ जाएगी। डब्ल्यूएचओ ने भारत के लिए समाधान बताया है कि नगर पालिका स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए क्लीन एयर जोन बनाए जाएं, स्कूल के आसपास वाहनों का आना-जाना कम हो। इसके साथ ही नवीनीकृत ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने के भी प्रयास किए जाएं।