नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है, गुजरात में यह गरमाने लगा है। विधानसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे कि जनता किस मुद्दे पर वोट करती है? लेकिन कांग्रेस मन बना चुकी है कि नौकरीपेशा मध्यम वर्ग से टूटे तार जोड़ने के लिए पुरानी पेंशन स्कीम को गरमाया जाएगा। संकेत है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को अहम चुनावी मुद्दा बनाएगी। रेवड़ी संस्कृति पर आर्थिक विशेषज्ञों की ओर से सवाल खड़े हो रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश के बाद गुजरात में पार्टी घोषणापत्र में भी शामिल होगा ओपीएस
हिमाचल चुनाव से जुड़े पार्टी के वरिष्ठ रणनीतिकारों ने प्रचार अभियान थमने के बाद स्वीकार किया कि एनपीएस की जगह पुरानी पेंशन स्कीम के वादे ने कांग्रेस के चुनाव अभियान को प्रभावशाली बनाने में सबसे प्रमुख भूमिका निभाई है। पिछले आठ-नौ वर्षों में कांग्रेस के लगातार चुनावी पराजयों में रूठे मध्यम वर्ग की सबसे प्रमुख भूमिका रही है। सोनिया गांधी ने उदयपुर संकल्प शिविर में जनता और विशेष रूप से मध्यम वर्ग से संवाद के टूटे तार की बात उठाते हुए भारत जोड़ो यात्रा की घोषणा की थी।
राहुल कर्नाटक के चुनावी वादे में इसे शामिल करने की कर चुके हैं घोषणा
कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी की कमान संभालने के दिन ही रूठे मतदाताओं को मनाने में कसर बाकी नहीं रखने का एलान किया था। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इस पहलू पर खासा फोकस कर रहे हैं। कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा के अंतिम दिन राहुल ने पार्टी की इस रणनीति का साफ संकेत देते हुए 2023 के मार्च-अप्रैल में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पुरानी पेंशन स्कीम को अहम मुद्दा बनाने का एलान किया। राहुल ने साफ कहा कि एनपीएस को खत्म कर पुरानी पेंशन स्कीम लागू करना कांग्रेस के चुनावी वादे में शामिल होगा।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ एनपीएस की जगह ओपीएस लागू करने का कर चुके हैं एलान
पार्टी का मानना है कि पुरानी पेंशन स्कीम के जरिये व्यापक मध्यम वर्ग को साधा जा सकता है। कांग्रेस शासित राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने-अपने राज्यों में एनपीएस की जगह ओपीएस लागू करने का एलान कर चुके हैं। झारखंड में झामुमो-कांग्रेस की गठबंधन सरकार भी राज्य में पुरानी पेंशन स्कीम की राह पर लौट रही है। तमिलनाडु की द्रमुक सरकार ने अभी इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया है, मगर उस पर भी ओपीएस की बहाली का सियासी दबाव है।
आम आदमी पार्टी ने भी किया वादा
कांग्रेस और उसके गठबंधन वाली सरकारों में पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर चल रही इस हलचल के बाद इसमें ज्यादा संदेह नहीं कि 2024 में मध्यम वर्ग को रिझाने के लिए ओपीएस पार्टी के एक प्रमुख चुनावी वादे के रूप में रहेगी। पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने पिछले महीने ही राज्य सरकार के कर्मचारियों को एनपीएस की जगह पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ देने का एलान किया। लुभावने वादों के जरिये दिल्ली में 2015 और 2020 में लगातार दो विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली बड़ी जीत के बाद राजनीतिक दलों के बीच रेवड़ियों के सहारे चुनावी कामयाबी हासिल करने की होड़ बढ़ती जा रही है।
पुरानी पेंशन स्कीम में सरकारी खजाने पर पड़ेगा भारी बोझ
जनवरी 2004 से लागू हुई एनपीएस में पेंशन का बोझ सरकार पर नहीं है। कर्मचारी को इसके लिए अपना अंशदान देना पड़ता है और सरकार भी उतनी ही राशि एनपीएस में योगदान करती है। इसमें जमा राशि के आधार पर ही पेंशन तय होता है। पुरानी पेंशन स्कीम में सरकार को ही पूरा पेंशन वहन करना होता है। जाहिर तौर पर इसका बोझ देश की वित्तीय सेहत को प्रभावित करेगा। खासतौर से तब जबकि पेंशनधारियों की संख्या सरकारी नौकरीपेशा से अधिक है। लेकिन कांग्रेस और अधिकतर विपक्षी दल इस मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहते हैं।