राष्ट्रीय

बीजेपी ने दभोई में तोड़ी उम्मीदवार रिपीट नहीं करने की परंपरा


गुजरात में अगले महीने पहले चरण के लिए मतदान होने हैं। सभी पार्टियों ने इसकी तैयारियों में पूरी ताकत झोंक दी है। ऐसे में वडोदरा जिले में डभोई विधानसभा सीट की बात करते हैं जिसके नाम दिलचस्प रिकॉर्ड है। 1962 में बनने के बाद इस सीट के मतदाताओं ने कभी भी एक उम्मीदवार को विधानसभा नहीं भेजा है। हालांकि 2017 एक अपवाद है, जब वोटर्स ने लगातार दूसरी बार बीजेपी उम्मीदवार को विजयी बनाया था। 2017 में ट्रेंड तोड़ने वाले शैलेश मेहता उर्फ सोट्टा को बीजेपी ने एक बार फिर से मैदान में उतारा है। उनसे इस बार हैट्रिक लगाने की उम्मीद है। मेहता ने कहा, ‘यह एक तरह का रिकॉर्ड ही है क्योंकि बीजेपी ने दभोई सीट पर कभी अपने उम्मीदवार को रिपीट नहीं किया है। मैं पहला ऐसा व्यक्ति हूं जिसे लगातार दूसरी बार टिकट मिला है।’ यहां के मतदाताओं ने राष्ट्रीय कांग्रेस (ओ), जनता पार्टी और यहां तक कि स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों को जिताया है। 1995 से यह सीट बारी-बारी से बीजेपी और कांग्रेस के खाते में आती रही है। 1998 में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के बेटे सिद्धार्थ पटेल ने डभोई सीट जीती, लेकिन 2002 में वे इसे बीजेपी के सीएम पटेल से हार गए। सिद्धार्थ ने 2007 में बीजेपी के अतुल पटेल को हराकर सीट वापस जीती, लेकिन उन्हें 2012 में बीजेपी के बालकृष्ण पटेल ने 5,100 से अधिक वोटों के मामूली अंतर से हरा दिया। इसके बाद बीजेपी ने सिद्धार्थ के खिलाफ 2017 में मेहता को मैदान में उतारा। परिस्थिति सिद्धार्थ के पक्ष में थे क्योंकि इस सीट पर पटेल समुदाय के लगभग 25 प्रतिशत मतदाता हैं लेकिन मेहता ने जीतकर सभी को चौंका दिया। मेहता ने दावा किया, ‘मैं इस बार भी जीतूंगा क्योंकि मैंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में सड़कों, ओवर-ब्रिज और यहां तक कि एक खेल परिसर परियोजना सहित कई विकास कार्य किए हैं।’ कांग्रेस ने अभी तक दभोई से किसी उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है। यह एक ऐतिहासिक शहर है, जिसे सदियों पहले दरभावती कहा जाता था और इसका अस्तित्व छठी शताब्दी का है। चालुक्य राजा जयसिम्हा सिद्धराज ने 12वीं शताब्दी में इस शहर की किलेबंदी की थी। दभोई गुजरात में मुगल शासन के दौरान जिला मुख्यालय हुआ करता था। यह अब भौगोलिक रूप से अहम एसओयू के निकट स्थित है।