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यूरोप और ईयू से अलग राह पर चला जर्मनी, चीन से बढ़ी नजदीकियों


नई दिल्‍ली । चीन लगातार दुनिया के देशों में अपनी मौजूदगी को बढ़ा रहा है। यही वजह है कि अब उसके निशाने पर यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था जर्मनी आ चुकी है। जर्मनी ने हाल में ही चीन को अपना सबसे बड़ा पोर्ट बेचा है। वहीं अब जर्मनी के चांसलर आलोफ स्‍कोल्‍त्‍ज चीन की यात्रा पर गए हुए हैं। इस पूरे घटनाक्रम के राजनीतिक और रणनीतिक मायनें काफी बड़े हैं। जर्मनी का इस तरह से चीन के प्रति झुकाव यूं ही नहीं है। इसके पीछे कहीं न कहीं जर्मनी को चीन की जरूरत और चीन को यूरोप को साधने की कसक शामिल है।

चीन की यूरोप पर लगी नजर

ये बात जगजाहिर है कि ग्रीस के बाद जर्मनी में एंट्री करने वाले चीन की नजर अब पूरे यूरोप पर लगी है। चीन यूरोप को अपने उत्‍पादों के लिए खोल देना चाहता है। राष्‍ट्रपति शी चि‍नफिंग की ये कवायद कुछ और भी कह रही है। दरअसल, चीन जिस मकसद से यूरोप या दूसरे देशों का रुख कर रहा है उसका अर्थ केवल अपने उत्‍पादों के लिए नए बाजारों का रुख करने तक सीमित नहीं है। चीन इसके जरिए कुछ और मकसद को भी साध रहा है। ये मकसद काफी कुछ अमेरिका के वर्चस्‍व को तोड़ना है।

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कई तरह के संकट से जूझ रहा है जर्मनी

आपको बता दें कि जर्मनी इस वक्‍त ऊर्जा संकट से जूझ रहा है। रूस की गैस सप्‍लाई बंद होने के बाद यूरोप के कई देशों ने इसको लेकर अलग-अलग जगहों पर हाथ-पांव मारे हैं। जर्मनी ने भी इसको लेकर कनाडा से बात की थी, लेकिन ये बात नहीं बन पाई। वहीं दूसरी तरफ रूस ने यूरोप से गैस की सप्‍लाई कट कर चीन को आपूर्ति बढ़ा दी है। जर्मनी क्‍योंकि यूरोपीय संघ का हिस्‍सा है इसलिए रूस को लेकर कोई भी फैसला लेने से पहले उसको कई बार सोचना पड़ता है। यूरोपीय संघ की बात करें तो वो रूस से काफी खफा है और किसी भी तरह की प्रतिबंधों में ढिलाई वो नहीं देना चाहता है।

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गैस की किल्‍लत

एक सच्‍चाई ये भी है कि जर्मनी के पास रूस की गैस के अलावा कोई दूसरा विकल्‍प फिलहाल नहीं है। ऐसे में चीन उसके लिए एक जरिया हो सकता है। हालांकि ये जर्मनी के लिए महंगा साबित हो सकता है। जर्मनी में चीन पर निर्भरता को लेकर विरोध के स्‍वर भी उठते दिखाइ दे रहे हैं। बीते तीन वर्षों में जी-7 देशों के किसी राष्‍ट्राध्‍यक्ष की ये पहली बीजिंग यात्रा है।

ओलाफ के साथ में हैं उद्योगपति

चांसलर ओलाफ के साथ जर्मनी का एक प्रतिनिधिमंडल भी बीजिंग गया है। जर्मनी अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को एक नई मजबूती देने के मकसद से भी चीन की तरफ देख रहा है। जर्मनी कारों का सबसे बड़ा उत्‍पादक है। हाल ही में यूरोपीय संघ ने सदस्‍य देशों में पेट्रोल और डीजल की कारों को बंद करने के लिए 2030 का समय तय किया है। जर्मनी के कार उद्योग से जुड़े लोगों ने इसपर नाराजगी जाहिर की है। जर्मनी और चीन मुक्‍त व्‍यापार की दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।

चीन ने जर्मनी को किया खुश

ओलाफ के बीजिंग यात्रा के बाद चीन ने एक बड़ा कदम उठाते हुए जर्मनी की बनाई कोरोना वैक्‍सीन को लगाने की भी इजाजत दे दी है। जर्मनी ने साफ कर दिया है कि वो चीन की वन चाइना पालिसी के साथ जाने के लिए पूरी तरह से तैयार है। विरोधी सुरों के बाद भी ओलाफ ने ये तय कर लिया है कि वो चीन के साथ जाएंगे और व्‍यापार को आगे बढ़ाएंगे। बता दें कि चीन और जर्मनी के बीच कुछ मुद्दों पर राय एक समान नहीं है। इसके बाद भी दोनों ही देश सभी मुद्दों पर बात करने के लिए राजी हो गए हैं।