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राहुल गांधी फिर से दो सीटों पर लड़ रहे चुनाव, क्या है प्रियंका के लिए कांग्रेस का प्लान? जयराम रमेश ने बताया सबकुछ


मुंबई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी वायनाड के साथ-साथ रायबरेली से भी चुनाव लड़ने वाले हैं। अटलकें लगाई जा रही थी कि इस बार प्रियंका गांधी भी चुनावी मैदान में उतरने वाली हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें किसी लोकसभा सीट से उम्मीदवार नहीं बनाया।

 

प्रियंका गांधी के चुनाव न लड़ने पर बीजेपी ने कांग्रेस पर कई सवाल दागे। बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कहा कि राहुल गांधी का खेमा नहीं चाहता कि प्रियंका गांधी राजनीति में आगे बढ़े।

रायबरेली विरासत नहीं जिम्मेदारी: जयराम रमेश

हालांकि, प्रियंका गांधी के चुनाव न लड़ने पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सफाई दी। उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा, “रायबरेली सिर्फ़ सोनिया जी की नहीं, खुद इंदिरा गांधी जी की सीट रही है। यह विरासत नहीं ज़िम्मेदारी है, कर्तव्य है।

 रही बात गांधी परिवार के गढ़ की, तो अमेठी-रायबरेली ही नहीं, उत्तर से दक्षिण तक पूरा देश गांधी परिवार का गढ़ है। राहुल गांधी तो तीन बार उत्तरप्रदेश से और एक बार केरल से सांसद बन गये, लेकिन मोदी जी विंध्याचल से नीचे जाकर चुनाव लड़ने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाये?

प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने पर क्या बोले कांग्रेस नेता?

प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने पर जयराम रमेश ने कहा,”प्रियंका गांधी प्रियंका जी धुआंधार प्रचार कर रही हैं और अकेली नरेंद्र मोदी के हर झूठ का जवाब सच से देकर उनकी बोलती बंद कर रही हैं। इसीलिए यह जरूरी था कि उन्हें सिर्फ़ अपने चुनाव क्षेत्र तक सीमित ना रखा जाए। प्रियंका जी तो कोई भी उपचुनाव लड़कर सदन पहुंच जायेंगी।”

राहुल गांधी जी की रायबरेली से चुनाव लड़ने की खबर पर बहुत सारे लोगों की बहुत सारी राय हैं।

लेकिन वह राजनीति और शतरंज के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। और सोच समझ कर दांव चलते हैं। ऐसा निर्णय पार्टी के नेतृत्व ने बहुत विचार विमर्श करके बड़ी रणनीति के तहत लिया है। इस निर्णय से BJP, उनके…— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) May 3, 2024

राहुल गांधी सोच-समझकर दांव चलते हैं: जयराम रमेश

जयराम रमेश ने आगे कहा, राहुल गांधी राजनीति और शतरंज के  मंजे हुए खिलाड़ी हैं। और सोच समझ कर दांव चलते हैं। ऐसा निर्णय पार्टी के नेतृत्व ने बहुत विचार विमर्श करके बड़ी रणनीति के तहत लिया है। इस निर्णय से BJP, उनके समर्थक और चापलूस धराशायी हो गये हैं। बेचारे स्वयंभू चाणक्य जो ‘परंपरागत सीट’ की बात करते थे, उनको समझ नहीं आ रहा अब क्या करें?