पटना: बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई का डीएम जी कृष्णैया के परिवार समेत एक पक्ष जमकर विरोध कर रहा है। इस बीच बिहार सरकार का कहना है कि सरकार की नजर में आईएएस, बासा के अधिकारी या अन्य किसी भी आम आदमी में कोई अंतर नहीं। जेल मैनुअल 2012 के तहत यह प्रावधान है कि कैदी ने जेल में कम से कम 14 बिताए हो। इस अवधि में उसका चाल-चलन अच्छा हो तो ऐसे कैदी को 20 वर्ष परिहार अवधि हो जाने पर जेल से रिहा किया जा सकता है।
बिहार सरकार में मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि आनंद मोहन ने भी 15 वर्ष 9 माह की अवधी जेल में बिताई है और परिहार सहित जेल में बिताई कुल अवधि 22 वर्ष 13 दिन की हो चुकी है। इस वजह से तमाम नियम कायदे कानून का पालन करते हुए जेल मैनुअल में किए गए प्रावधानों के तहत उन्हें रिहा किया गया है। इस फैसले को राजनीतिक रंग देना कहीं से उचित नहीं है।
मोबाइल रखने के मामले को टाल दिया
आमिर सुबहानी ने कहा कि रिहाई के पूर्व आनंद मोहन का पूरा रिकॉर्ड देखा गया है। यह पूछे जाने पर कि उन पर जेल में मोबाइल रखने से जुड़ी एक प्राथमिकी पिछले वर्ष दर्ज की गई, इस संबंध में मुख्य सचिव ने जानकारी होने से अनभिज्ञता जाहिर की।
एक प्रश्न के उत्तर में मुख्य सचिव ने कहा कि नियम के तहत प्रोबेशन अफसर अपराधी के गांव जा कर यह पता लगाते हैं कि उस कैदी के छूटने से सामाजिक माहौल पर कोई बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। इस आकलन को भी नियम में शामिल किया गया है और इसका पालन भी आनंद मोहन के मामले में किया गया है।
आईएएस एसोसिएशन कर रहा है विरोध
केंद्रीय आईएएस एसोसिएशन द्वारा आनंद मोहन की रिहाई का विरोध किए जाने पर मुख्य सचिव ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को या किसी संगठन को अपनी मांग रखने का या अपनी बात कहने का पूरा अधिकार होता है। आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य सचिव के साथ ही गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव चैतन्य प्रसाद और कारा महानिरीक्षक शीर्षत कपिल अशोक भी मौजूद रहे।
6 साल में 22 बैठकें, 698 कैदी किए गए रिहा
- विशेष अवसरों यानी 26 जनवरी, 15 अगस्त व 2 अक्टूबर पर 104 कैदी छोड़े गए।
- 15 अगस्त पर और बंदियों को रिहा किया जाएगा