नयी दिल्ली (आससे)। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को घुटनों पर लगा दिया। मोदी सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए चिनाब नदी के पानी पर रोक लगा दी। ऐसे में अब एक बार फिर भारत ने पाकिस्तान पर जल प्रहार की तैयारी कर ली। सिंधु जल संधि के निलंबन के बीच केंद्र ने चिनाब नदी पर सावलकोट परियोजना को मंजूरी दी है। जिससे साफ होता है कि भारत का पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश है कि पानी को लेकर पुरानी रियायतों का दौरा खत्म हो चुका है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर 1,856 मेगावाट की सावलकोट जलविद्युत परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की सिफारिश की है। यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजना पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) के निलंबन के बाद फिर से जीवित की जा रही है। लगभग चार दशकों से रुकी हुई, सावलकोट परियोजना चिनाब बेसिन में भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक है और 1960 की संधि के तहत पश्चिमी नदी जल के अपने हिस्से का पूर्ण उपयोग करने के सरकार के प्रयासों का एक अहम हिस्सा है। इसको फिर से पहले जैसी स्थिति में लाने का काम 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद केंद्र सरकार की ओर से संधि को निलंबित करने की घोषणा के कुछ महीने बाद हुआ, जिससे भारत को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर स्वतंत्र रूप से बुनियादी ढांचा विकसित करने की अनुमति मिल गई थी। सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) के तहत तीन पूर्वी नदियां – रावी, व्यास और सतलुज भारत को उसके विशेष उपयोग के लिए आवंटित की गई थीं। जबकि तीन पश्चिमी नदियां – सिंधु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान के लिए निर्धारित थीं, हालांकि भारत के पास गैर-उपभोग्य उद्देश्यों जैसे कि रन ऑफ द रिवर जलविद्युत उत्पादन (जिसमें नदी के प्राकृतिक प्रवाह का उपयोग किया जाता है और बहुत कम या नगण्य जल भंडारण होता है), नौवहन और मत्स्य पालन के लिए उनके जल का उपयोग करने के सीमित अधिकार हैं। राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) लिमिटेड द्वारा 31,380 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से निर्मित होने वाली यह रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना जम्मू और कश्मीर के रामबन, रियासी और उधमपुर जिलों में फैलेगी। इसमें 192.5 मीटर ऊंचा रोलर-कॉम्पैक्टेड कंक्रीट बांध और भूमिगत बिजलीघर शामिल हैं, जो सालाना लगभग 7534 मिलियन यूनिट बिजली उत्पन्न करने के लिए डिजाइन किए गए हैं। एक बार चालू हो जाने पर यह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होगी और उत्तरी राज्यों के लिए महत्वपूर्ण पीकिंग पावर और ग्रिड स्थिरता प्रदान करेगी। इस परियोजना का विकासात्मक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टि से महत्व है। क्षेत्र की बिजली आपूर्ति बढ़ाने के अलावा यह परियोजना भारत की चिनाब नदी के जल के प्रबंधन और भंडारण की क्षमता को भी बढ़ाएगी। यह अधिकार सिंधु जल संधि के तहत दिया गया है, लेकिन इंजीनियरिंग चुनौतियों और पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संवेदनशीलता के कारण संयम बरता था। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की नदी घाटी और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने 26 सितंबर को अपनी बैठक में एनएचपीसी के अपडेट प्रस्ताव की समीक्षा की, जिसमें कुल 1,401.35 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है, जिसमें 847.17 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है। इस परियोजना को जुलाई में चरण-ढ्ढ वन मंजूरी प्राप्त हुई।
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