नई दिल्ली,। दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए। इस सम्मलेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीफ जस्टिस आफ इंडिया एनवी रमना ने संबोधित किया। एनवी रमना और प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान न्यायपालिका और कानूनों को मजबूत करने पर बल दिया।
कर्त्वय का पालन करते हुए ‘लक्ष्मण रेखा’ का हो ध्यान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एनवी रमना ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमें ‘लक्ष्मण रेखा’ का ध्यान रखना चाहिए, अगर यह कानून के अनुसार हो तो न्यायपालिका कभी भी शासन के रास्ते में नहीं आएगी। यदि नगरपालिकाएं, ग्राम पंचायतें अपने कर्तव्यों का पालन करती हैं, यदि पुलिस ठीक से जांच करती है और अवैध हिरासत में यातना समाप्त होती है, तो लोगों को अदालतों की ओर देखने की जरूरत नहीं है। सीजीआई ने कहा कि न्यायिक निर्देशों के बावजूद सरकारों की ओर से जानबूझकर निष्क्रियता दिखाना लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा नहीं है।
गहन चर्चा के बाद बनाया जाए ‘कानून’
चीफ जस्टिस आफ इंडिया ने कहा कि संबंधित लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को शामिल करते हुए गहन बहस और चर्चा के बाद कानून बनाया जाना चाहिए। अक्सर अधिकारियों के गैर-प्रदर्शन और विधायिकाओं की निष्क्रियता के कारण मुकदमेबाजी होती है जो टालने योग्य हैं।
पीआइएल अब ‘निजी हित याचिका’
सीजीआइ एनवी रमना ने जनहित याचिका के मुद्दे पर कहा, ‘जनहित याचिका (पीआइएल) के पीछे अच्छे इरादों का दुरुपयोग किया जाता है क्योंकि इसे परियोजनाओं को रोकने और सार्वजनिक प्राधिकरणों को आतंकित करने के लिए ‘व्यक्तिगत हित याचिका’ में बदल दिया गया है। यह राजनीतिक और कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्वियों के साथ स्कोर तय करने का एक साधन बन गया है।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मलेन में मुख्य बिंदुओं पर अपनी बात रखी जो इस प्रकार से हैं –
- 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे क़ानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 क़ानूनों को हमने खत्म किया। लेकिन राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।
- भारत सरकार न्याय व्यवस्था में तकनीकी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है। उदाहरण के तौर पर, ई-कोर्ट परियोजना को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। आज छोटे कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी डिजिटल ट्रांसजेक्शन आम बात होने लगी है।
- आज का सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आज़ादी के इन 75 सालों ने ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव दोनों के ही भूमिका और जिम्मेदारियों को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ,देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित हुआ है।
- 2047 में जब देश अपनी आज़ादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपने न्याय व्यवस्था को इतना समर्थ बनाएँ कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए।
- राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्ररण है। हमारे देश में जहां एक ओर ज्यूडिशरी की भूमिका का संविधान संरक्षक की है वहीं विधान मंडल नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है।
- मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा।