समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने आरोपी के खिलाफ दाखिल चार्जशीट को खारिज करने से इनकार कर दिया था। सर्वोच्च अदालत की पीठ ने कहा कि एफआईआर या चार्जशीट में आईपीसी की धारा-376 (दुष्कर्म) के तहत अपराध के लिए जरूरी कारकों को खोजना असंभव है। इसलिए अदालत पांच अक्टूबर 2018 में दिए गए उच्च न्यायालय के आदेश को रद करती है।
हालांकि सर्वोच्च अदालत ने आरोपी के खिलाफ दर्ज मामले और उसके खिलाफ आरोपपत्र पर संज्ञान लेने वाले अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के 24 मई, 2018 के आदेश को रद्द करते हुए सीआरपीसी की धारा-482 के तहत आवेदन की अनुमति भी दी। पीठ ने कहा कि मामले में उच्च न्यायालय द्वारा आरोप पत्र को संबोधित किया जाना था कि क्या सभी आरोप सही हैं। माना जाता है कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच 2013 से दिसंबर 2017 तक सहमतिजन्य संबंध थे। वे दोनों शिक्षित वयस्क हैं।
प्रतिवादी ने इस अवधि के दौरान 12 जून 2014 को किसी और से शादी कर ली। यह विवाह 17 सितंबर 2017 को आपसी सहमति से लिए गए तलाक के चलते समाप्त हो गया। गौर करने वाली बात यह भी कि प्रतिवादी के आरोपों से संकेत मिलता है कि अपीलकर्ता के साथ उसका संबंध उसकी शादी से पहले, शादी के दौरान और तलाक देने के बाद भी जारी रहा।