पटना (आससे)। बिहार में विश्वप्रसिद्ध सूर्योपासना का चतुर्दिवसीय छठ महापर्व कल ८ नवम्बर को नहाय-खाय से आरंभ होगा। ९ नवम्बर को छठ व्रति का एक मुक्त खरना प्रसाद अर्पण, १० नवम्बर को सायंकालीन अर्ध्य और ११ नवम्बर को प्रात:कालीन अर्ध्य उदीयमान सूर्यदेव को अर्पित होने के साथ ही संपन्न होगा छठ महापर्व।
सूर्योपासना के इस महापर्व के बारे में मान्यता है कि जीवन के अज्ञान, मोह, अयथार्थ, द्वंन्द्व, संशय, अर्निणय, आत्महीनता, बौद्धिक दुर्बलता, शारीरिक, मानसिक, आत्मिक दुर्बलता आदि के समवेत अंधकार स्वरूप से मुक्ति के लिए परम प्रकाश के साथ संबंध होना अनिवार्य है। इसलिए परमात्मारूपी परम प्रकाश से पूर्णरूपेण स्वयं को सम्बद्ध करना मानव मात्र का पुनीत कर्तव्य है।
इस आशय का शास्त्र निर्णय बताते हुए हुनमज्योतिष केन्द्र बेउर के आचार्य डा. सुदर्शन श्रीनिवास शांडिल्य ने कहा-परब्रह्म के परम प्रकाश का लोक कल्याणार्थ प्रसारण पांच रूपों में है। ये पांच रूप हैं-सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, विद्युत, तारा। इन पांचों में परब्रह्मप्रकाश रूप में जगत कल्याणार्थ प्रत्यक्ष रूप में भगवान भाष्कर का नित्य संचार होता है। भगवान भास्कर के प्रकाश से ही सम्पूर्ण विश्व सुरक्षित और संवद्र्धित है। इस दृष्टि से सूर्योपासना मानव जीवन का अभिन्न नित्य अंग है, जिसका विशेष रूप से कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तथा सप्तामी को अर्ध्य अर्पण करने की परंपरा रही है।
पवित्रता, निष्ठा, श्रद्धा और विश्वासपूर्वक छठ व्रत अनुष्ठान का निर्देश शास्त्र विहित है। वेद और उपनिषद में भगवान सूर्य को आरोग्य प्रदाता के रूप में व्यक्त किया गया है। देवियों के अनेक रूपों में षष्ठी देवी का पूजन आराधना बच्चों के आयु एवं आरोग्य की कामना से शास्त्रविहित है। प्रत्येक शिशु के जन्म के छठे दिन मातायें लोकभाव भाषा में शिशु की दीर्घायु आरोग्य की कामना से षष्ठी देवी का पूजन व्याप्त है। जो व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व जागरण कर सूर्योपासना करता है वह निश्चित ही सदविचारी तथा सदाचारी होगा।