नई दिल्ली। भारत के साथ रणनीतिक रिश्ते बनाने के बाद यूएई और सऊदी अरब ने पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लिए अपने दरवाजे पूरी तरह से बंद कर दिये हैं। ऐसे में भारत विरोध पर टिकी आइएसआइ ने अब तुर्की की राजधानी अंकारा को अपना नया गढ़ बनाने का काम शुरु कर दिया है। इसमें तुर्की की एर्दोगेन सरकार व वहां की खुफिया एजेंसी एनआइओ की मदद भी मिल रही है। मुस्लिम देशों के नए नेता के तौर पर अपने आपको स्थापित करने में जुटे आर टी एर्दोगेन पाकिस्तान की इस मंशा को पूरी हवा दे रहे हैं।
भारत की खुफिया एजेंसियों ने इस बारे में केंद्र सरकार को दो विस्तृत रिपोर्टें सौंपी है और तुर्की-पाकिस्तान के बीच भारत के खिलाफ हो रहे ध्रुवीकरण और इसके व्यापक आंतरिक और बाह्य असर को लेकर सतर्क रहने को कहा है। नेशनल सिक्यूरिटी काउंसिल की तरफ से तैयार इस रिपोर्ट के मुताबिक दुबई में अपनी गतिविधियों पर लगाम लगने के बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी पिछले छह-सात वर्षों से अंकारा को नये भारत विरोधी गढ़ के तौर पर विकसित करने में जुटी हुई है। अब इसे कुछ सफलता मिलती दिख रही है।
शिक्षा के लिए तुर्की जाने वाले छात्रों को टार्गेट करना भी इसका एक हिस्सा
तुर्की सरकार आइएसआइ की गतिविधियों को कुछ मोर्चों पर मदद भी करने लगी है। कोशिश यह है कि जिस तरह से पूर्व में आइएसआइ ने देश के कुछ खास तरह के मीडिया हाउसों, शैक्षणिक संस्थानों व गैर सरकारी संगठनों के जरिए लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की थी वैसा ही तुर्की के जरिए किया जाए। शिक्षा के लिए तुर्की जाने वाले छात्रों को टार्गेट करना भी इसका एक हिस्सा है। इसी तरह से काउंसिल की तरफ से तैयार एक दूसरी रिपोर्ट में तुर्की की तरफ से केरल से वास्ता रखने वाले कुछ कट्टर इस्लामिक संगठनों में पैठ को लेकर आगाह किया गया है।
तुर्की ने पहले भी भारत विरोधी गतिविधियों में जुटी शख्सियतों की आर्थिक मदद की
एजेंसियों को इस बात की भी जानकारी है कि इन संगठनों के कुछ लोगों ने कतर जा कर तुर्की के खुफिया एजेंसी के अधिकारियों से मुलाकात की थी। तुर्की ने पहले भी कुछ भारत विरोधी गतिविधियों में जुटी शख्सियतों को आर्थिक मदद पहुंचाई है लेकिन अब वह ज्यादा मुखर होता दिख रहा है। भगोड़े जाकिर नाईक व कश्मीर के कट्टरपंथी दिवंगत नेता सैयद अली शाह गिलानी को तुर्की से मिली फंडिंग की सूचना भारतीय एजेंसियों को पहले से हैं और इसकी जांच भी हुई है।
इस रिपोर्ट में वर्ष 2020 में अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच युद्ध के दौरान भारत के कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों की तरफ से अजरबैजान के पक्ष में आवाज उठाने व संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखे जाने का हवाला दिया गया है।
तुर्की में एर्दोगेन सरकार के आने के बाद इस देश का रुख हुआ भारत विरोधी
सनद रहे कि तुर्की व पाकिस्तान अजरबैजान के पक्ष में है। भारत खुल कर अर्मेनिया का साथ नहीं देता लेकिन सितंबर, 2019 में पीएम मोदी ने अमेरिकी यात्रा के दौरान अर्मिनिया के राष्ट्रपति निकोल पाशियान से मुलाकात कर अपनी प्राथमिकता दिखा दी थी। सूत्रों के मुताबिक तुर्की में एर्दोगेन सरकार के आने के बाद इस देश का रुख काफी हद तक भारत विरोधी हो गया है।