पटना

कूकी कोयल, भौंरे गुनगुनाये, वसंत आ गया


(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। फूलों ने पंखुरियां खोलीं, तो पसर गयी मादकता की खुशबू। उन्माद में भौरें बेकाबू हो गये। पहले गुनगुनाये। फिर, उड़ चले। लगे मंडराने लगे फूलों पर। कोयल भला कहां चूकने वाली थी। वह भी लगी कूकने। ऐसे में भला शीत कैसे ठहरती। उसने अपनी चादर समेटी। कि, वसंत आ गया।

वसंत ऋतुओं का राजा है। इसीलिए अकेले नहीं आया है। साथ में है चतुरंगी सेना। ऋतुओं के राजा के अभिषेक की तैयारी में सृष्टिï झूम उठी है। अभिषेक मंगलवार को पंचमी तिथि में होगा। विद्या, वाणी और कला की अधिष्ठïात्री मां शारदे की पारम्परिक तरीके से पूजा-अर्चना के साथ। मां सरस्वती के चरणों में अर्पण के साथ ही उडऩे लगेंगे रंग-बिरंगे अबीर-गुलाल।  उसे अपने साथ उड़ा ले जाने के लिए पवन बेताब है।

वसंत के आगमन की आहट भर से हवा वासंती हो चुकी है। उसके शीतल स्पर्श भर से खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल इठलाने लगे हैं। उसकी महक को झूमती हवा दूर-दूर तक फैलाने लगी है। पेड़ों की डालियां झूमने लगी हैं। डालों की झूमक में शीत से निष्प्राण हो चुके पत्ते गिरने लगे हैं। उनकी जगह  लेने को नवकोपलों में व्याकुलता है।

वासंती छटा में कामदेव के वाण चल रहे हैं। कामदेव दिखते भले नहीं हों, लेकिन सृष्टिï के तमाम जीव-जंतुओं को अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे हैं। बिना शरीर के ही रति से आंखें चार कर रहे हैं। कामदेव की पत्नी हैं रति।

परंपरा से चली आ रही मान्यता के मुताबिक शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती कठोर तपस्या में थीं। बावजूद, ध्यानमग्न शिव की आंखें  नहीं खुल रहीं थीं। वे तप में मग्न थे।   शिव की आंखें खोलने की जिम्मेदारी कामदेव को मिली। कामदेव ने उसे सहर्ष स्वीकार किया। कामदेव अपने रूप में आये। चारों ओर वासंती छटा बिखर गयी। भौंरे गुनगुनाने लगे। कोयलिया कूकने लगी।

शिव का तप टूट गया। आंखें खुलीं, तो सामने कामदेव थे। गुस्से से उनकी तीसरी आंख खुली और कामदेव भष्म हो गये। कामदेव की पत्नी रति बिलख पड़ीं। रो-रो कर उनका बुरा हाल हो गया। वह पूछ रहीं थीं कि उनके पति का अपराध क्या था। पति के बिना कैसे रहेंगी। रति के क्रंदन से शिव का हृदय पसीज गया। शिव ने वर दिया कि बिना शरीर के ही कामदेव जिंदा रहेंगे। अपनी मौजूदगी का एहसास करायेंगे। इसीलिए वसंत पंचमी को रति-काम महोत्सव मनाने की परंपरा है।