मुंबई। वंचित बहुजन आघाड़ी (वीबीए) के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत पर पीठ में खंजर भोंकने का आरोप लगाते हुए महाविकास आघाड़ी (एमवीए) से बातचीत बंद कर दी है। अब वह अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़े कर रहे हैं। समझौता न हो पाना एमवीए के लिए कई सीटों पर मुसीबत खड़ी कर सकता है। यही नहीं, भाजपानीत महायुति को भी उनसे सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि वह खेल बिगाड़ने के खेल में माहिर माने जाते हैं।
2022 में उद्धव के साथ गठबंधन
बाबासाहेब आंबेडकर के पौत्र एडवोकेट प्रकाश आंबेडकर ने जून 2022 में शिवसेना का विभाजन होने के कुछ ही दिनों बाद उद्धव ठाकरे से मिलकर उनसे अपनी पार्टी का गठबंधन कर लिया था। तब उद्धव ठाकरे को उनका साथ डूबते को तिनके का सहारा जैसा लग रहा था। उस समय माना गया था कि उद्धव ठाकरे वीबीए को अपने कोटे से सीटें देकर मविआ में शामिल करेंगे। क्योंकि एमवीए में शिवसेना के अलावा राकांपा और कांग्रेस भी थे, लेकिन समय बीतता गया और उद्धव ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की। यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के गठबंधन आईएनडीआईए का गठन होने के बाद खुद प्रकाश आंबेडकर ने कई बार उसमें शामिल होने की इच्छा जताई। लेकिन उद्धव ठाकरे उन्हें उसमें भी शामिल करने की कोई पहल नहीं की।
प्रकाश ने रखा सीट बंटवारे का प्रस्ताव
हाल के दिनों में एमवीए में सीट बंटवारे की बातचीत शुरू होने पर प्रकाश आंबेडकर ने प्रस्ताव रखा कि राज्य की 48 सीटों में से कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), राकांपा और उनकी पार्टी वीबीए को 12-12 सीटें बांटकर चुनाव लड़ना चाहिए। ये प्रस्ताव नहीं माना गया तो उन्होंने अपनी पार्टी के लिए 28 सीटों की मांग रख दी। कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी मांग घटाते हुए सीटों की संख्या 16 कर दी। फिर भी बात नहीं बनी। एमवीए उन्हें तीन-चार सीटों से ज्यादा देने का मन नहीं बना पा रही थी। वह उन्हें यह भी नहीं बता रही थी कि उन्हें कौन-कौन सी सीटें मिल सकती हैं। तो अंततः उन्होंने शिवसेना से अपना डेढ़ वर्ष पुराना गठबंधन तोड़ते हुए एमवीए से बातचीत बंद कर दी।
एमवीए के लिए हो सकता है खतरा
एमवीए से प्रकाश आंबेडकर का इस तरह रूठना उसके लिए शुभ संकेत तो कतई नहीं हैं, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके कारण कांग्रेस-एनसीपी को नौ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। उनके उम्मीदवारों को 50,000 से डेढ़ लाख के बीच वोट मिले थे, और कांग्रेस-एनसीपी उम्मीदवारों की हार का अंतर इससे कम था। उनके कारण सुशील कुमार शिंदे और अशोक चह्वाण जैसे दिग्गजों को अपनी सीट गंवानी पड़ी थी।
छह माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने राज्य की 236 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। तब कांग्रेस-एनसीपी उनके कारण 22 सीटें गंवानी पड़ी थीं। इस बार भी अब तक वह अपनी पार्टी के आठ उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं। उम्मीदवारों का चयन वह क्षेत्र का जातीय गणित देखकर कर रहे हैं। वह मराठा आंदोलन से चर्चा में आए मनोज जरांगे पाटिल और ओबीसी महासंघ के नेता प्रकाश शेंडगे से एक साथ बातचीत कर रहे हैं, जबकि मराठा आरक्षण आंदोलन में ये दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध हैं।
बीजेपी को मिलेगा झटका!
आंबेडकर चुनिंदा सीटों पर दोनों के मजबूत उम्मीदवारों को अपना समर्थन देने और कहीं-कहीं उनका समर्थन लेने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी ये कोशिश रंग लाई तो वह एमवीए का तो बड़ा नुकसान करेंगे ही, कुछ सीटों पर भाजपानीत महायुति को भी झटका दे सकते हैं।