चंदौली। हम अपने साधुओं को कहता हूं देखों किसे कैसे सम्बोधन करना चाहिए, कब कहा बैठना चाहिए, कब कितना मात्रा में बोलना चाहिए, क्या बोलना चाहिए, क्या नहीं बोलना चाहिए, यह सब सीखना चाहिये और आज तुम नहीं सिखोगे तो यह परम्परा टूट जायेगा और फिर बीच में का कड़ी टूट जाने के बाद उसको जोड़ा नहीं जायेगा। जोडऩे पर वह गांठ पड़ जायेगा और वह गांठ वाला न मालूम न जाने कभी भी खुल सकता है, उभर सकता है और उसे वह खत्म हो जायेगा। यह सिलसिला और उसके खत्म हो जाने पर नष्ट हो जाने पर तुम्हे फिर टूटने पर भी नहीं मिलेगा। उक्त बातें परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कही। बगैर उसके रहे हम मनुष्य नहीं हो पाउंगा। हमारा अधूरा ही रहेगा और ऐसे परिस्थिति में हम फिर भी चाहे इस सांसारिक प्राणियों से न इन से चाहे, इन देव प्राणियों से चाहे स्वर्गीय प्राणियों से चाहे कि वह हमारी गीतों को सुने, हमारी गीता को सुने, हमारी संगीतों को एक साथ गाया हुआ। वह और एक साथ कहा हुआ वह विचारों को सुने, उससे भी हमलोग वंचित हो जायेंगे, बन्धुओं हमारी इस पृथ्वी पर जीवन लेना, न लेना कोई महत्व नहीं रखता है। बहुत से मनुष्य कीट पतंग के पतन अपने कर्म वश यहां जन्मते हैं, मरते है, उसी तरह से हमलोगों का भी उसी तरह से सभी समय बीत जायेगा, जो मनुष्य हम बड़े बुद्धिमान हुआ करते हैं, कहा गया है कि मनुष्य बनने के लिए बहुत से देवताये तरसते हैं, कहा गया है इस शरीर के लिए इस शरीर से देव दर्शन होता है। इस शरीर से साधना होता है, इस शरीर पूजन होता है, और यह शरीर बड़ा ही कुशल और मंगल कृत्यों की तरफ प्रेरित करता है। जिससे हम बहुत अपने आप में सहसो जनम से नाना प्रकार के योनियों में भटकते रहे हैं। उन योनियों से मुक्ति दिलाता है और यह सब उसके अच्छे परिणाम है। वह सामने आता है, बन्धुओं अपने माता.पिता या अपने आये-गये अपने बन्धुओं, मित्रो, शुभचिंतको के साथ हम अच्छे व्यवहार करने के लिए उदित होते हैं और उसमें बहुत अपने खेल खेल में झूठमुठ खेले सचमुच होय और सचमुच खेले विरला कोय झूठमुठ हम भी खेलते .खेलते भी हम बचपन में ऐसा ही किया करते थे। कभी तस्वीर, कभी फोटो कभी हनुमान, कभी शिव, कभी विष्ण, कभी नारायण जो भी एक व्यक्ति थे। वह चित्र बनाया करते थे। बनाकर मुझे हाथ में थमा दिया करते थे तो मैं बस उसको लेकर घंटा दो घंटा तक उसी में हमारा चित रमा करता था, आज मुझे जब बैठता हूं तो उसको याद करता हूं, हाय वह दिन अब नहीं आयेगा। कितना अच्छा लगता था। और वह कितना अच्छा लगता था, मैं जानता हूं मिलना अंत है, मधुर प्रेेम कही और यह जीवन है, कुछ परमात्मा से मिलने के बाद अंत हो जाता है, उस सच्चाई को जानने के बाद फिर कुछ जानने की इच्छा नहीं करता है। परमपूज्य अघोरेश्वर बाबा कीनाराम के व्यक्तित्व व कृतित्व के बाबत श्रद्घालुओं को बताते हुए पूज्य मां श्री सर्वेश्वरी सेवा संघ जलीलपुर पड़ाव के संस्थापक पूज्य गुरुदेव बाबा अनिल राम जी का कहना है कि गुरु के लिए सीस भी कटाना पड़े तो परम सौभाग्य है। सौजन्य- कीनाराम स्थल खण्ड-३