चंदौली। परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कहा कि तब मैं झिझकता हूं बिगड़ता भी हूं, मै नकार जाता हूं मुझे उस समय ना करना पड़ता है, हा होते हुए भी ना कहना पड़ता है, बन्धु इन सब का आश्रय लेना पड़ता है क्योकि यह वे जगत है व्यवहार की इसमें यदि ठीक से आप व्यवहार न करेंगे तो आप को कोई चलने नहीं देगा, फिरने नहीं देगा कोई समझने नहीं देगा और आप पर बहुत से बहुत आरोप-प्रतिरोप लोग लगाययेंगे। और उससे होगा क्या कि आप का हीन भावनाओं का जन्म होगा आप में और फिर आप जो कर रहे है अच्छे बुरे उन कर्तव्यों से आप विमुख होंगे। और उस विमुखता होने से आप की जो वेग है उस वेग का भी बिल्कुल उपेक्षा होगा, बन्धुओं तो आप अपने बुद्धि द्वारा उस सच्चाई को अपने गुरूजनों के बताये हुए अपने सद्ग्रंथों के बताये हुए और अपने ऐसे पुरूषों के बताये हुए सभी का निचोड़ लेकर फिर अपने से परामर्श कर के निर्णय लेना होगा, नहीं बहुत से बात सिर्फ रामायण, गीता, भागवत के कहने कहाने सुनने सुनाने की होती है। बन्धु सब व्यवहार में नहीं होता है सब कुछ जो लिखा जाता है वह व्यवहार की वस्तु नहीं होता है, बन्धु व्यवहार में उसका कुछ और ही रूप होता है, और वह आप के साथ रोज नित्य प्रति घटता है। आप को छल से कपट से बहुत लोगों ने ठगा है उस पर आप सतर्क दृष्टि नहीं रखेंगे तो हमारा भी रूप् बना के हमारा भी नाम लेकर के आप को लोग ठग सकते है। आप को लोग आंखों में धूल झोंक सकते है, आप को लोग गलत पथ पर लाकर खड़ा भी कर सकते है, बन्धु आप सीधा इतना सीधा नहो आप को सीधा बनाने का कोई गलत लाभ न उठाये इसका भी ध्यान रखना चाहिए, बन्धु आप के सिधाई का यदि कोई गलत लाभ उठा रहा है तो आप कठोरता से काम आई, यदि नहीं आते हैं तो अपना ही आप उपेक्षा करते है और उसका भी आप वध करते है, उसके पाप कर्म का जो संतुलन है उस संतुलन में आप सहायक होते है आप उस बखत यदि थोड़ा सा वक्र भंगिमा होते है, तो फिर आप से वह आप के आक्रमण से वह बच जाता है और उसमें जो उत्पन्न होने वाला है पाप करण या हुआ है वह भी समाप्त हो जाता है। धीरे.धीरे सनय.सनय थोड़े देर बाद वह सोच सकता है कि मैं इस व्यक्ति के साथ नाहक इस तरह का रार करने जा रहा था। इस व्यक्ति के साथ नहक में इस कृत्य को करने जा रहा था, यह इतना सीधा नहीं है वह पूर्णमासी का चांॅद है कि जब चाहे तब ग्रहण लगा दे यह इस पर बहुत टेढ़ा है इस पर हर चॉद पर ग्रहण लगना मुश्किल होता है बन्धु टेढ़ा रहना भी संस्था में परम आवश्यक है बिल्कुल सरलता सधुता के सन्त साधुता की सिधाई नहीं समझ लेता कहने में सिधाई होगी व्यवहार में तुम्हे टेढ़ा-टेढ़ा दिखना पड़ेगा यदि टेढ़ा नहीं रहियेगा तो बहुत से प्राणी है यहां पे बहुत से पुरूष है बहुत से है स्त्रियां लोग है अपने माता.पिता बन्धु बान्धो की सकल में आप पर इतना मोह जाल डालेंगे उनकी मोह जाल में फंसकर आप कर्म से चूक जाइयेगा। देखते ही है यहां पर बहुत से नव जवान प्राणी माता.पिता के मोह जाल में ही तो पड़कर के ही तो अपने वास्तविकता से बहुत दूर फेंका जाता है मै कल एक नवयुवक को देखा था यहां आया था। साधु बनने को आज से 12 साल पहले 15 साल पहले मैं एक दिन रखा दो दिन रखा मैने कहा चले जाओ तुम भाई उसके घर चि_ी दिये वह परिवार के लोग गया के चईता ग्राम लिवा गये फिर वह भाग आया फिर लिवा गये ले जाकर उसका शादी कर दिये फिर आया था मैंने पूछा कितने बच्चे हैं बाबू मुह सुख गया था, चेहरा गला सूख गया था उसका रिश्तेदार एक अफसर था डेहरी आनसोन में उच्च अधिकारी था वह भी आया था उसको उस बखत ले जाने के लिए मैंने कहा बाबू सब लोग सम्मान करते है, सम्मान पूछ रहे हैं। हमारी थाली लोटा बेचकर हमको जितना कुछ दिये थे ले लिया मेरे पास कुछ नहीं देखिये मैं फटा हुआ वस्त्र पहन कर आया हूं और बे टिकट आया हूं। सौजन्य से बाबा कीनाराम स्थल खण्ड-६