नई दिल्ली, । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि तलाक-ए-हसन की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका को चार दिनों के बाद सूचीबद्ध किया जाएगा। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने अदालत को अवगत कराया कि महिला को तलाक का तीसरा नोटिस मिला है और उसका एक नाबालिग बच्चा है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को चार दिनों के बाद सूचीबद्ध करने के लिए कहा।
तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर याचिका दाखिल
दरअसल, एक मुस्लिम महिला द्वारा ‘तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य सभी रूपों’ को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में सभी के लिए तलाक की समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने की मांग की गई है।
कई इस्लामी राष्ट्रों ने तलाक-ए-हसन पर लगाया प्रतिबंध
याचिकाकर्ता ने कहा कि तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों की प्रथा न तो मानव अधिकारों और लैंगिक समानता के आधुनिक सिद्धांतों के साथ सामंजस्यपूर्ण है, न ही इस्लामी विश्वास का एक अभिन्न अंग है। कई इस्लामी राष्ट्रों ने इस तरह की प्रथाओं को प्रतिबंधित किया है, जबकि यह सामान्य रूप से भारतीय समाज और विशेष रूप से याचिकाकर्ता की तरह मुस्लिम महिलाओं को परेशान करना जारी रखता है।
- याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि यह प्रथा कई महिलाओं और उनके बच्चों, खासकर वे लोग जो समाज के कमजोर आर्थिक वर्ग से संबंधित हैं, के जीवन पर भी कहर बरपाती है
- याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई है कि ‘तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य सभी रूप’ शून्य और असंवैधानिक हैं।
- यह याचिका एक मुस्लिम महिला ने दायर की है, जिसने पत्रकार होने के साथ-साथ एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक-ए-हसन की शिकार होने का दावा किया है।