नई दिल्ली। उत्तराखंड (Uttarakhand) सात साल बाद एक बार फिर त्रासदी की चपेट में आ गया है। राज्य के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से आई तबाही में कई गांव के बहने की खबर है। ऐसे में एक और बुरी खबर ये है कि चमोली जिले में ही नंदाकिनी नदी किनारे शिलासमुद्र ग्लेशियर भी खतरे में है। ग्लेशियर की तलहटी पर बने छेद और आसपास आई दरारें यहां कभी भी भीषण रूप अख्तियार कर सकती हैं।
शिलासमुद्र ग्लेशियर टूटता है तो… पर्यावरण के जानकारों की मानें तो, बड़ा भूकंप आने की दशा में अगर भविष्य में शिलासमुद्र ग्लेशियर टूटता है तो, नंदप्रयाग, सितेल, कनोल, घाट और कनोल से लेकर हरिद्वार तक कई शहर तबाही की जद में आ सकते हैं। ये ग्लेशियर लगभग 8 किलोमीटर परिक्षेत्र में फैला हुआ है। गढ़वाल हिमालय के ईकोलॉजी सिस्टम में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाने वाले इस ग्लेशियर पर तब संकट के बादल छाने लगे, जब ग्लेशियर की तलहटी में बना छोटा सा छेद धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
शिलासमुद्र ग्लेशियर के पास कई दरारें
जानकारों की मानें तो पहले ग्लेशियर के पास एक छोटा सा छेद था, लेकिन अब देखते ही देखते छेद के अलावा अन्य कई बड़ी-बड़ी दरारें आने लगी हैं। ऐसे में अब जब चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने की घटना सामने आई है, तब से इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में शिलासमुद्र ग्लेशियर एक बड़ा खतरा बन सकता है।