बिहारशरीफ। नालंदा में सहकारिता के जनक रहे अयोध्या बाबू की पुण्य तिथि 10 फरवरी को है। इस अवसर पर अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिये उन्हें याद किया जायेगा। जब भी जिले में सहकारिता की चर्चा होती हैं अयोध्या बाबू याद किये जाते है। 01 अप्रैल 1927 को जिले के अस्थावां प्रखंड के धर्मपुर गांव में उनका जन्म हुआ था। बचपन से ही तीव्र बुद्धि और संगठनात्मक कार्य के प्रति वे सजग रहे थे। यही वजह रही कि शुरुआती दौर से हीं उनके कार्यों की प्रशंसा होती रही।
बीएबीटी तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद गांव के विकास के लिए ग्रामोत्थान परिषद् की स्थापना की, परंतु समाज में अत्यधिक असामनता, गरीबों के प्रति अन्याय को देखते हुए 1950 में कानून की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने वकालत शुरू किया। युवावस्था से ही समाजसेवा, संगठन और सहकारिता के प्रति विशेष लगाव था। उनका कहना था कि सहकारिता का नेता वहीं हो सकता है जो एक सच्चा इंसान हो, क्योंकि सहकारिता का कोई जात-पात, धर्म नहीं होता। यही वजह रही कि जिस समय जिले में सहकारिता के प्रति कोई सोच नहीं थी अयोध्या बाबू ने जिले में सहकारिता को नया आयाम दिया। उन्होंने अमरावली उच्च विद्यालय में अयोध्या प्रसाद महिला कॉलेज जैसे संस्थान की स्थापना की।
1956 से 1988 तक वे लगातार नालंदा केंद्रीय सहकारिता बैंक के निर्वाचित अवैतनिक मंत्री रहे। इनके कार्यकाल में बैंक उत्तरोत्तर विकास करता रहा था। 1972 से 77 एवं 1980 से 85 तक वे अस्थावां विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे। इसके साथ हीं अस्थावां प्रखंड के आजीवन प्रमुख भी रहे। उन्होंने बिहार राज्य सहकारिता बैंक, विस्कोमान, बिहार राज्य भूमि विकास बैंक, बिहार राज्य निर्माण निगम के निदेशक एवं उपाध्यक्ष जैसे प्रतिष्ठित पदों को भी सुशोभित किया। सहकारिता के माध्यम से बिहार राज्य खासकर नालंदा जिले के सर्वांगीण विकास में योगदान दिया। 01 फरवरी 1991 को उनका स्वर्गवास हो गया, लेकिन उनकी अमिट छाप अभी भी है। यही वजह है कि लोगों के बीच वे श्रद्धा से याद किये जाते है।