नई दिल्ली। तुल व नंदा मौलिक नाम के दंपत्ति बड़ी मुश्किल से इस कोरोना काल में जीविकोपार्जन कर पा रहे हैं। पत्नी दिनभर में 1000 बीड़ी बनाती हैं तो उन्हें 140 रुपये मिलते हैं जबकि नंदा कंस्ट्रक्शन मजदूर हैं उन्हें 250 रुपये दिहाड़ी मिलती है।
मतुआ समुदाय से संबंध रखने वाला यह परिवार 1984 तक बांग्लादेश में रहता था लेकिन वहां बहुसंख्यक मुस्लिमों के उत्पीड़न के चलते वे भागकर पश्चिम बंगाल आ गए। पुतुल कहती हैं कि एक महिला होने के नाते वे घर से बाहर निकलने में भी डरती हैं। उनके पास अभी तक भारत की नागरिकता नहीं है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि भारत में दशकों से रह रहे लोगों को बाहर नहीं निकाला जाएगा। वहीं भाजपा ने सीएए कानून में मतुआ समुदाय के लोगों को नागरिकता दिए जाने की एक खिड़की खोल रखी है। लेकिन यह सीएए कब तक लागू होगा मालूम नहीं।
पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय के काफी बड़ी आबादी है। इन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा गया है। अब जबकि राज्य में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं हर पार्टी मतुआ समुदाय का समर्थन हासिल करने की होड़ में जुटी हुई है। मतुआ समुदाय में जहां एक बड़ी आबादी देश के बंटवारे के पहले से पश्चिम बंगाल में रह रही थी वहीं बंटवारे तथा बंगलादेश बनने के बाद बड़ी संख्या में लोग वहां से भागकर पश्चिम बंगाल में आकर बस गए हैं।
बंग्लादेशी घुसपैठियों के रूप में स्थानीय लोग इन्हें अब भी यहां से भगाना चाहते हैं। मुख्यत: प्रदेश चार जिलों नादिया, साउथ व नार्थ 24 परगना तथा मालदा में तीन करोड़ से भी अधिक मतुआ समुदाय के लोग रहते हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे 70 विधानसभायें हैं जहां मतुआ समुदाय के वोट हार जीत में मायने रखते हैं।
वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय ने जमकर भाजपा व मोदी को वोट किया था। यही कारण है कि प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित लोकसभा सीटों मे से 4 सीट जीतने में वह सफल रही। भाजपा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मतुआ समुदाय को नागरिकता दिलाने का चुनावी वायदा किया था। इसके लिए केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन कानून भी ला चुकी है लेकिन अभी तक यह लागू नहीं हो पाया है।
नार्थ 24 परगना के दलित नेता व लेखक कपिल कृष्ण ठाकुर कहते हैं कि वैसे पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय के लोग व्यवहारिक रूप से एक सामान्य भारतीय नागरिक की तरह ही रह रहे हैं। उनके पास वोटर आई कार्ड, आधार कार्ड व अन्य सभी जरुरी कागजात मौजूद हैं। ऐसा कोई कानून नहीं है जो उनके नागरिक अधिकारों को प्रभावित करता हो फिर भी कुल लोग उन्हें बंग्लादेशी बताकर डराते धमकाते रहते हैं तथा ब्लैकमेल करते हैं।
लोगों को अपने अधिकारों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। पुतुल कहती हैं कि हमें संदेह की निगाह से देखा जाता है। किसी भी सरकारी दफ्तर में काम के लिए जाइए तो नागरिकता साबित करने के लिए तरह तरह के कागजात मांगे जाते हैं जबकि दूसरों के साथ ऐसा नहीं होता है। इससे एक तरह की अनिश्चितता मन में बनी रहती है।
लोगों की इसी असुरक्षा का भाजपा ने पूरा फायदा उठाया। नादिया जिले में रानाघाट दक्षिणी सीट से भाजपा प्रत्याशी मुकुल अधिकारी कहते हैं कि रिफ्यूजी भाजपा के साथ जुड़ गए हैं क्योंकि यही एक पार्टी है जो उनकी नागरिकता के लिए लड़ रही है।
वे कहते हैं कि उनके क्षेत्र में 70 फीसदी लोग मतुआ समुदाय के हैं। खुद मतुआ समुदाय से तालुक रखने वाले अधिकारी कहते हैं कि सीएए लागू होगा और लोगों को नागरिकता हासिल होगी। विरोधी कहते हैं कि एक साल हो गया सीएए बिल पास हुए लेकिन अभी इसके नियम उपनियम नहीं बनाये गये। भाजपा लोगों को गुमराह कर रही है। मतुआ समुदाय के लोग बिना शर्त नागरिकता चाहते हैं जबकि सीएए कानून में ऐसा नहीं है।