देशमें जहां कोरोना संक्रमणके नये मामलोंमें गिरावटकी प्रवृत्ति बनी हुई है वहीं ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) का तेजीसे प्रसार गम्भीर चिन्ताका विषय है। लगभग सभी राज्योंमें ब्लैक फंगसके मामले मिल रहे हैं लेकिन दस राज्य इससे अधिक प्रभावित हैं। महाराष्टï्रमें १५ सौसे अधिक मामले सामने आये हैं और ९० लोगोंकी मृत्यु हो गयी। इसी प्रकार गुजरातमें ११६३ मामलोंमें ६१ लोगोंकी, मध्यप्रदेशमें ५७५ मामलोंमें ३१ लोगोंकी, हरियाणामें २६८ मामलोंमें आठ लोगोंकी, उत्तर प्रदेशमें ५०० मामलोंमें १९ लोगोंकी, बिहारमें १०३ मामलोंमें दो लोगोंकी, तेलंगानामें ९० मामलोंमें दस लोगोंकी मृत्यु हुई है। पूरे देशमें लगभग नौ हजार मामले दर्ज किये गये हैं। ८७ प्रतिशतसे अधिक मामले सिर्फ आठ राज्योंमें मिले हैं और कुल दो सौ लोगोंकी मृत्यु हुई है। कई राज्योंने ब्लैक फंगसको महामारी घोषित कर दिया है। अब देश दो महामारियोंका सामना कर रहा है। इससे चुनौतियां बढ़ गयी हैं। ब्लैक फंगसके बढ़ते मामलोंके कारण उपचारमें इस्तेमाल होनेवाली एण्टी-फंगल दवा एम्फोटेरिसिन-बीकी मांग बढ़ गयी है। कुछ क्षेत्रोंमें यह दवा बाजारसे गायब हो गयी है जिससे मरीजोंके इलाजमें परेशानी उत्पन्न हो गयी है। केन्द्रीय रसायन और उवर्रकमंत्री डी.वी. सदानन्द गौड़ाका कहना है कि २३,६८० अतिरिक्त दवाकी शीशियां सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशोंको आवण्टित कर दी गयी हैं। वस्तुत: ब्लैक फंगस एक दुर्लभ संक्रमण है। कोरोनाके मरीजों या ठीक हो चुके मरीजोंमें यह खतरनाक साबित हो रहा है, जो प्राणघातक भी है। यह एक फंगल संक्रमण है जो विशेष रूपसे उन लोगोंको संक्रमित करता है जो किसी न किसी बीमारीके कारण दवाओंपर निर्भर हैं। इसके कारण ऐसे लोगोंमें रोगाणुओंसे लडऩेकी क्षमता कम हो जाती है। इसलिए लोगोंको ब्लैक फंगससे बहुत ही सतर्क रहने और सावधानी बरतनेकी जरूरत है। कोई भी लक्षण दिखनेपर तत्काल चिकित्सकसे परामर्श लेनेकी जरूरत है। सरकारकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह ब्लैक फंगस महामारीसे निबटनेकी कारगार रणनीति बनाये और दवाकी उपलब्धता भी सुनिश्चित की जाय। दवाके अभावमें किसी मरीजकी मृत्यु नहीं होने पाये इसके लिए ठोस कदम उठाये जायं। कोरोनाके कहरके बीच ब्लैक फंगससे निबटनेके लिए सभी आवश्यक उपाय किये जाने चाहिए। यह नया खतरा बड़ी चुनौतीके रूपमें सामने आया है जिसे परास्त करनेकी जरूरत है।
नेपालमें अब जनताकी बारी
नेपालमें सत्ताके लिए तोड़-जोड़की राजनीतिसे गहराये सियासी संकटके बीच राष्टï्रपति विद्या देवी भण्डारीने शुक्रवारकी आधी रातको संसद भंग कर १२ एवं १९ नवम्बरको मध्यावधि चुनाव करानेकी घोषणा कर दी। यह दूसरा मौका है जब राष्टï्रपति भण्डारीने प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओलीकी सिफारिशपर संसद भंग कर चुनावकी तिथि घोषित की है। पिछले साल २० दिसम्बरको संसद भंग की थी लेकिन फरवरीमें सर्वोच्च न्यायालयने इसे फिरसे बहाल कर दिया था। राष्टï्रपतिका संसद भंग करना अप्रत्याशित नहीं है। यह तो होना ही था, क्योंकि प्रधान मंत्री ओली और विपक्षी गठबंधन दोनों ही सरकार बनानेकी स्थितिमें नहीं हैं। हालांकि दोनोंने ही नयी सरकार बनानेका दावा पेश किया था लेकिन सियासी संकटमें उस वक्त नया मोड़ आया जब ओली और विपक्षी दलोंके नेता शेर बहादुर देउबाने राष्टï्रपतिको सांसदोंके हस्ताक्षरवाले पत्रमें सरकार बनानेका दावा रखा। इस राजनीतिक उठापटकमें सबसे विवादास्पद बात यह रही कि दोनोंने ऐसे कुछ सांसदोंका समर्थन होनेका दावा किया जिनके नाम दोनोंकी ही सूचीमें शामिल थे। ऐसी स्थितिमें राष्टï्रपतिके समक्ष संसद भंग कर नया चुनाव करानेके अलावा कोई विकल्प नहीं था। राष्टï्रपतिका मध्यावधि चुनाव करानेका निर्णय उचित और सामयिक है। नेपालमें अब जनताकी बारी है। नेपालकी जनताकी यह जिम्मेदारी बनती है कि चीनने वहां जो माहौल बनाया है उसे समाप्त करे। नेपालकी जनताको यह सोचना होगा कि राष्टï्रहित किसमें है। शान्ति और राजनीतिक स्थिरताका माहौल बनना चाहिए। नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता भारतके लिए भी हितकारी नहीं है। राष्टï्रहितमें नेपालकी सम्प्रभुतापर कोई आंच नहीं आनी चाहिए। इसके लिए सरकार बनानेमें जनताको अपनी बुद्धि और विवेकसे काम लेना होगा।