- सियासत में इबारत और विरासत के मायने बहुत अहम होते है. इतने अहम कि, एक पीढ़ी इबारत गढ़ती है और उसके बाद की कई पीढ़ियां उसी इबारत को विरासत बनाकर सत्ता के शीर्ष या किसी अन्य बिंदु पर विराजमान रहती है या बने रहने की कोशिश करती है.
आगामी मंत्रिमंडल विस्तार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई तरह के समीकरणों को साधेंगे. वो समीकरण चुनावी राज्यों से भी जुड़े होंगे, समाजिक और राजनैतिक सिरों से भी जुड़े होगे और समीकरणों के इसी सार में कुछ सूरमा अपने को फिट करने में लगे हुए हैं. राज की बात ये है कि सियासत, समीकरण और कैबिनेट विस्तार के इस मेल में रेल कइयों को प्यारी हो गई है. राज की बात ये है कि रेल मंत्रालय पर कई राजनेताओं का मन लट्टू हो चुका है. प्रधानमंत्री इसका तोहफा किसे देंगे वो तो वक्त बताएगा लेकिन अपनी अपनी राजनीति रेल पर सवार हो जाए इसलिए अलग अलग सूरमाओं के पास अपनी अपनी विरासत का चिट्ठा तैयार है.
वर्तमान परिस्थितियों की बात करें तो पियूष गोयल 2 बड़े मंत्रलयों की जिम्मेदारी निभा रहे हैं जिनमें से एक रेल मंत्रालय भी है. राज की बात ये है कि ज्यादा संभावना है कि रेल मंत्रालय मंत्रिमंडल में शामिल किसी नए चेहरे को दिया जाए. बस इसी संभावना के आधार पर सियासत को रेल पर सवार करने की कोशिशें तेज हो गई हैं. रेल मंत्रलाय से जुडी विरासत औऱ चाहत की कहानी को बताने से पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि नीतिगत स्तर पर रेलवे का खाका तैयार हो चुका है अब बस एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो इन नीतियों को जमीन पर उतारने का काम कर सके
तो चलिए अब बताते हैं आपको वो राज की बात जिसमें आपको समझ आएगा कि आखिर किसे किसे रेल मंत्रलाय की ललक ज्यादा है और उसके पीछे की विरासत वाली दलीलें क्या दी जा रही हैं. इस फेहरिस्त में सबसे पहले बात जेडीयू की. राज की बात ये है कि जेडीयू ये चाहती है कि उनके कोटे से जो रेल मंत्री बने उसे ही रेल मंत्रलाय दिया जाए. इसके पीछे दलीलें जमीनी भी हैं, सियासी भी हैं और विरासत वाली भी हैं.