नई दिल्ली । विश्व लगभग हर वर्ष और हर में कहीं न कहीं लोगों का किसी न किसी मुद्दे पर आंदोलन चलता ही रहता है। जैसे ईरान में महिलाओं ने जो आंदोलन सरकार के खिलाफ छेड़ा हुआ है उसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है। हालांकि ऐसे कुछ ही आंदोलन दिखाई देते हैं जिनकी गूंज इस तरह से सुनाई देती है और जो एक देश की सीमाओं से निकलकर पूरी दुनिया प्रभावित करते हैं। ईरान में जारी आंदोलन भी इनमें से एक है। पूरी दुनिया में महिलाएं इसका समर्थन कर रही हैं। ईरान में भी कई पुरुष अब इन महिलाओं के समर्थन में उतर आए हैं।
ईरान में जारी महिलाओं का आंदोलन
ईरान में जारी आंदोलन केवल हिजाब तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये आंदोलन उन महिलाओं की आजादी से जुड़ा है जो कट्टरपंथियों के सामने अब तक झुकती आई हैं। जिन्हें समाज में दोयम दर्जा दिया जाता है। जिन्हें कुछ समय तक वो हक भी हासिल नहीं थे जो लगभग पूरी दुनिया में महिलाओं को हासिल हैं। ईरान में जो विरोध प्रदर्शन आंदोलन का रूप ले चुका है वो दरअसल, महिलाओं के अंदर दशकों से लगी एक चिंगारी है जो अब दिखाई दे रही है। ये महिलाएं केवल हिजाब से मुक्ति नहीं चाहती हैं बल्कि उस समाज से मुक्ति के लिए सड़कों पर हैं जो उन्हें दबाकर रखता आया है। इन महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबरी का हक चाहिए।
अमीनी की मौत के बाद भड़की चिंगारी
22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद ये चिंगारी भड़क गई है। हिरासत में अमीनी की मौत ने कई सवालों को जन्म दिया है। मौजूदा समय में ईरान में महिलाओं का प्रमुख नारा वुमेन लाइफ फ्रीडम है। अपने बालों को काटना और हिजाब या बुर्का की होली जलाना इन महिलाओं के आदोलन की पहचान बनागया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया की खबरों की बात करें तो इस आंदोलन के दौरान करीब 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सरकार इस आंदोलन को दबाने की पूरी कोशिश कर रही है।
ब्लैक लाइव्स मैटर
अमेरिका में जार्ज फ्लायड की हत्या के बाद शुरू हुआ ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी थी। 25 मई 2020 की एक घटना के बाद ये आंदोलन पूरे अमेरिका में फैल गया और विदेशों में भी इसके समर्थन में लोग सड़कों पर उतर आए थे। बीते 29 मई, 2020 को अमेरिका के मिनेसोटा राज्य के मिनियापोलिस शहर में श्वेत पुलिसकर्मियों द्वारा एक अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लायड की बर्बर हत्या के विरोध में इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इंगलैंड के ब्रिस्टल शहर में 17वीं शताब्दी के दास व्यापारी एडवर्ड कोल्स्टन की मूर्ति को तोड़ दिया गया । इस तरह की घटनाएं अमेरिका और उसके बाहर कई जगहों पर हुई थीं। जार्ज की हत्या के बाद अफ्रीकी अमेरिकन लोग सड़कों पर उतरे थे। अमेरिका के कई दिग्गज और जाने माने चेहरे भी इस आंदोलन का गवाह बने थे। इस घटना से सबक लेकर अमेरिका के कई राज्यों और नगरपालिकाओं ने पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार के कानूनों पर विचार शुरू कर दिया गया था।
अमेरिका में गर्भपात के अधिकार को लेकर हुआ आंदोलन
अमेरिका में गर्भपात का अधिकार पाने के लिए महिलाएं लगातार आंदोलन कर रही हैं। अमेरिका में दशकों से ये मुद्दा ज्यों का त्यों बना हुआ है। अमेरिका में ये विवाद 1973 में शुरू हुआ था। उस वक्त देश की सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर लिया था। कोर्ट का कहना था कि ये महिलाओं का मौलिक अधिकार है। 1992 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई महिला गर्भपात को लेकर अपना फैसला खुद ले सकती है। इसमें दखल नहीं दिया जा सकता है। इसी वर्ष जब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटा तो हजारों की संख्या में महिलाएं सड़कों पर उतरी थीं। उनका कहना था कि महिला इस संबंध में क्या फैसला ले इसका हम उन्हें दिया जाना चाहिए। अमेरिका में हुए इस आंदोलन को विश्व के कई हिस्सों से समर्थन भी मिला था। आपको बता दें कि विश्व के कई देशों में गर्भपात के खिलाफ नियम हैं। वहां पर गर्भपात कराए जाने को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।
एंटी इराक वॉर प्रोटेस्ट
वर्ष 2002 के अंत में इराक युद्ध के खिलाफ शुरू हुए विरोध प्रदर्शन ने जल्द ही एक आंदोलन की शक्ल ले ली थी। ये आंदोलन जल्द ही बड़े स्तर पर चला गया और इसके समर्थन में विश्व के कई देशों में लोग सड़कों पर उतरे। 2003 में भी ये जारी रहा। न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में इस आंदोलन के बारे में कहा गया था था कि एक तरफ अमेरिका है तो दूसरी तरफ विश्व बिरादरी की इसके प्रति सोच। ये आंदोलन अमेरिका द्वारा छेड़े गए युद्ध के खिलाफ था। आंदोलनकारी अमेरिका के अफगानिस्तान में घुसने से भी खासा नाराज थे। रोम में अमेरिका के खिलाफ के हुए विरोध प्रदर्शन में रिकार्ड 30 लाख लोग एकत्रित हुए थे। समूचे यूरोप से लोग यहां पर आए थे। इसकी संख्या को देखते हुए ये विरोध प्रदर्शन गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया था। इसको एंटी वार रैली का नाम दिया गया था।
थिआनमेन चौक
1989 में चीन में हुआ आंदोलन ने पूरी दुनिया में वहां की कम्यूनिस्ट सरकार का घिनौना चेहरा विश्व के सामने रखा था। चीन की सरकार के आदेश के बाद इस आंदोलन को कुचलने के नाम पर 10 हजार से अधिक छात्रों की की जिंदगी छीन ली गई थी। जून 1989 में पेइचिंग के थियानमेन चौक पर हजारों की संख्या में छात्र लोकतंत्र बहाली के समर्थन में इकट्ठा हुए थे। इस आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने बड़ी संख्या में सैनिकों और टैंको को सड़कों पर उतार दिया था। ब्रिटिश राजदूत एलन डोनाल्ड के एक पत्र के मुताबिक इस घटना में कम से कम 10 हजार लोगों की मौत हुई थी। चीन ने इसकी खबरों को बाहर जाने से रोकने के लिए सैंसरशिप लागू कर दी थी। इस दौरान की टैंक के सामने निहत्थे एक आदमी की फोटो इस आंदोलन की पहचान बन गई थी।