करीब दो दर्जन सिफारिशों में समिति ने परीक्षा प्रक्रिया को मजबूती देने, शिक्षा में को¨चग संस्थानों की बढ़ती दखल आदि को लेकर भी अहम सुझाव दिए गए है। समिति का कहना है कि मौजूदा समय में परीक्षाओं में प्रश्न पत्र लीक होना, गलत प्रश्न पत्र देना, बड़े पैमाने पर नकल और छात्र-परीक्षक गठजोड़ जैसे कई ऐसे गलत आचरण लगातार देखने को मिल रहे है।
परीक्षा प्रबंध योग्यता के मानक भी तय हो
उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए परीक्षा प्रबंध योग्यता के मानक तय होने चाहिए। जिनका मूल्यांकन नैक रेटिंग के दौरान होना चाहिए। इससे ऐसे सभी संस्थानों की पहचान भी हो सकेगी। शिक्षा से जुड़ी इस संसदीय समिति के अध्यक्ष राज्यसभा सदस्य डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे हैं। समिति ने कहा कि कोचिंग के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों और कालेजों का गठजोड़ एक तरह का ब्लैक एजुकेशन है। ऐसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए ऐसे संस्थानों की मान्यता रद करने और उन्हें दंडित करने के लिए सरकारों को एक तंत्र बनाना चाहिए।
शिक्षकों की जवाबदेही भी तय हो
समिति ने ऐसे मामलों की जांच के लिए राष्ट्रीय स्तर पर दल गठित करने का सुझाव दिया है। इसके अलावा विदेशों की तर्ज पर विश्वविद्यालय व कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की जवाबदेही भी तय करने की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि इस तरह के प्रदर्शन मूल्यांकन से शिक्षण गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
समिति की अन्य अहम सिफारिशें
- डीम्ड विश्वविद्यालय की जगह सिर्फ विश्वविद्यालय शब्द के इस्तेमाल की अनुमति दी जाए। क्योंकि इससे उच्च शिक्षा में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। खासकर विदेशों में इन संस्थानों को लेकर भ्रम रहता है।
- भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन के दौरान यह ध्यान दिया जाए कि किसी भी नियामक के कामकाज व अधिकारों में किसी तरह का टकराव न पैदा हो। उनके अधिकार और जवाबदेही में स्पष्टता होना चाहिए।
- उच्च शिक्षा संस्थानों को उद्योगों के साथ अपने जुड़ाव और वर्तमान स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए। ताकि कुशल कर्मचारियों की कमी को खत्म किया जा सके।
- उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने और पर्याप्त और योग्य शिक्षकों की तैनाती के लिए सरकार को शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में सुधार करना चाहिए।