- भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 पर रूस और चीन ने साथ नहीं दिया.
दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं. हालाँकि इसके बावजूद भारत सरकार ने संतोष जताते हुए कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की अहम चिंताओं का ध्यान रखा गया है.
अगस्त महीने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भारत के पास थी, जो आज यानी एक सितंबर को समाप्त हो गई.
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ ने इसे लीड ख़बर बनाई है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाँच स्थायी सदस्य देशों- चीन, फ़्रांस, रूस, यूके और यूएस को पी-5 भी कहा जाता है. ‘द हिन्दू’ ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि प्रस्ताव में तालिबान से कहा गया है कि वो अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी समूहों को रोके और जो भी अफ़ग़ान देश से बाहर निकलना चाहते हैं, उन्हें निकलने में मदद करे.
कहा जा रहा है कि यूएनएससी के सदस्य देशों में उच्चस्तरीय समन्वय के कारण ऐसा हो पाया है. इसमें अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की भूमिका को भी अहम माना जा रहा है. इसके साथ ही भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के नेतृत्व वाले नए विशेष समूह की भी सक्रिय कोशिश रही है.
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, ”यूएनएससी के प्रस्ताव में कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी देश पर हमले के लिए नहीं होना चाहिए या आतंकवादियों को पनाह नहीं मिलनी चाहिए. प्रस्ताव 1267 में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का भी नाम लिया गया है. भारत ने इस प्रस्ताव को लेकर अपनी अध्यक्षता के आख़िरी दिनों में काफ़ी सक्रियता दिखाई.”
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार प्रस्ताव पर पी-5 देशों में मतभेद इसलिए हुआ क्योंकि रूस और चीन चाहते थे कि इसमें इस्लामिक स्टेट और वीगर ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के साथ सभी समूहों को शामिल किया जाए.
दोनों देशों ने कई तरह की आपत्तियाँ जताईं. रूस और चीन ने आरोप लगाए हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस प्रायोजित प्रस्ताव आनन-फ़ानन में लाया गया. दोनों देशों ने कहा है कि इसमें आतंकवादी समूहों को ‘मेरे और उनके’ की तर्ज़ पर देखा गया है.
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, ”वोट पर स्पष्टीकरण देते हुए रूसी राजदूत वैसिली नेबेनज़िआ ने कहा कि अगर हमारे पास और वक़्त होता तो मतदान का नतीजा कुछ और होता.