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अमेरिका ने चीन पर परमाणु हमले का किया था विचार: रिपोर्ट


  • अमेरिकी सैन्य रणनीतिकारों ने वर्ष 1958 में ताइवान की सुरक्षा के लिए चीन पर परमाणु हमले के लिए ज़ोर दिया था.

‘पेंटागन पेपर्स’ से चर्चित हुए अमेरिका के पूर्व सैन्य एनालिस्ट डेनियल एल्सबर्ग ने कथित गोपनीय दस्तावेज़ों के कुछ हिस्सों को ऑनलाइन पोस्ट करते हुए ये दावा किया है.

ये भी दावा किया गया है कि उस समय अमेरिकी सैन्य रणनीतिकारों ने ये भी माना था कि तत्कालीन सोवियत संघ परमाणु हथियारों से अपने सहयोगी चीन की सहायता करेगा, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती है.

अमेरिकी अख़बार द न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक़, अमेरिकी रणनीतिकार ताइवान की रक्षा के लिए इस क़ीमत को चुकाने के लिए भी तैयार थे.

डेनियल एल्सबर्ग ने जिन गोपनीय दस्तावेज़ों के कुछ हिस्सों को सार्वजनिक किया है, उसके कुछ हिस्से पहली बार वर्ष 1975 में सार्वजनिक हुए थे.

90 वर्षीय एल्सबर्ग 1971 में तब सुर्ख़ियों में आए थे, जब उन्होंने वियतनाम युद्ध से संबंधित एक टॉप सीक्रेट स्टडी को अमेरिकी मीडिया में लीक किया था, इसे पेंटागन पेपर्स के नाम से भी जाना जाता है.

एल्सबर्ग ने ‘द टाइम्स’ को बताया कि उन्होंने 1970 के दशक के शुरुआती वर्षों में ताइवान संकट से जुड़ी टॉप सीक्रेट स्टडी को कॉपी किया था, लेकिन अब ये इसे इसलिए जारी कर रहे हैं क्योंकि ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन में इस समय ज़बरदस्त तनाव है.

दस्तावेज़ के लेखकों के मुताबिक़ उस समय ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ जनरल नाथन ट्विनिंग ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर कोई आक्रमण हुआ होता, तो अमेरिका चीन के सफल हवाई प्रतिबंध वाले अभियान को रोकने के लिए चीन के हवाई ठिकाने पर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर देता.

फ़ैसला

दस्तावेज़ में ट्विनिंग के हवाले से बताया गया है- अगर इससे हमला नहीं रुकता है, तो चीन के अंदर उत्तर में शंघाई तक जाकर परमाणु हमला करने के लिए कोई और विकल्प नहीं था.

लेकिन इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति डीडी आइज़नहॉवर ने पारंपरिक हथियारों पर भरोसा करने का फ़ैसला किया.

1958 का संकट तब समाप्त हुआ, जब चीनी सेना ने ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीपों पर तोपख़ाने के हमलों को रोक दिया, इस क्षेत्र को च्यांग काई-शेक के अधीन राष्ट्रवादी ताक़तों के नियंत्रण में छोड़ दिया गया.

चीन ताइवान को अपने अधीन मानता है. अमेरिका वर्ष 1979 से ही चीन को मान्यता देता है, लेकिन ताइवान को वो अपना अहम सहयोगी मानता है.

दूसरे कई देशों की तरह, अमेरिका के ताइवान के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं. लेकिन एक क़ानून के तहत अमेरिका ताइवान की आत्मरक्षा के लिए सहायता कर सकता है.

हाल ही में अमेरिका ने ताइवान को लेकर चीन के लगातार बढ़ते आक्रामक रुख़ को लेकर चेतावनी दी थी.

चीन ताइवान को वन चाइना पॉलिसी के तहत अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान अपने को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है.

चीन और ताइवान

1949 में चीन में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद से चीन और ताइवान में अलग-अलग सरकारें रही हैं.

चीन ने लंबे समय से ताइवान की अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों को कम करने की कोशिश की है. दोनों ने प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव के लिए संघर्ष किया है.

हाल के वर्षों में तनाव बढ़ा है और चीन ने ताइवान को अपने क़ब्ज़े में लेने के लिए बल प्रयोग से इनकार नहीं किया है.

हालाँकि ताइवान को कुछ ही देशों ने आधिकारिक रूप से मान्यता दी है, लेकिन इसकी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के कई देशों के साथ मज़बूत व्यावसायिक और अनौपचारिक रिश्ते हैं.

कई देशों की तरह अमेरिका का ताइवान के साथ कोई कूटनीतिक रिश्ता नहीं है, लेकिन अमेरिका का एक क़ानून ये अधिकार देता है कि अमेरिका ताइवान को अपनी सुरक्षा करने में मदद करे.