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आबेके बाद भारत-जापान रिश्ता


 

मार्च, २०२२ में सम्पन्न १४वें शिखर सम्मेलनमें भारत और जापानने साइबर सुरक्षा, सतत शहरी विकास सहयोग, कनेक्टिविटी, जल आपूर्ति, सीवेज, जैव विविधता, बागवानी, स्वास्थ्यके क्षेत्रमें ऋण समझौता, विकेन्द्रीकृत घरेलू अपशिष्टï जल प्रबन्धन, औद्योगिक प्रतिस्पर्धा भागीदारी रोडमैप सहित अनेक समझौते किये गये। इसके साथ ही क्वाडमें संयुक्त राज्य अमेरिका एवं आस्ट्रेलियाके साथ मिलकर भारत और जापान दोनों ही भारत-प्रशान्त क्षेत्रको मुक्त, खुला और समृद्ध बनाना चाहते हैं। इनके निशानेपर विशेष रूपसे चीन है। जापानके प्रधान मंत्री फुमियो किशिदाकी १९-२० मार्च, २०२२ को सम्पन्न दो दिवसीय भारत यात्रा इन दो देशोंके आपसी सम्बन्धोंको और अधिक प्रगाढ़ बनानेमें सहायक हुई। जापानी प्रधान मंत्रीकी भारत यात्रा ऐसे समयमें हुई जब एक तरफ पूरा विश्व कोविड-१९ से उपजे आर्थिक दंशसे जूझ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ रूस और यूक्रेनके बीच छिड़ा युद्ध चिन्ताजनक दशाकी तरफ बढ़ रहा है।
ज्ञातव्य है कि फुमियो किशिदा भारतीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीके निमंत्रणपर १४वें भारत-जापान शिखर सम्मेलनमें भाग लेनेके लिए नयी दिल्ली आये थे। दोनों देशोंके बीच १३वां शिखर सम्मेलन वर्ष २०१८ में जापानमें सम्पन्न हुआ था। वर्ष २०१९ में १४वां शिखर सम्मेलन भारतके गुवाहाटीमें प्रस्तावित था परन्तु असम हिंसाके कारण इसे स्थगित करना पड़ा था। यह शिखर सम्मेलन वर्ष २०२० एवं २०२१ में कोविड प्रकोपके कारण भी वास्तविकताकी धरातलपर नहीं उतर पाया। मोदी सरकारके केन्द्रमें सत्तारूढ़ होनेके पश्चात्ï भारत-जापानके सम्बन्धोंमें नयी गर्मजोशीका अहसास पूरा विश्व कर रहा है। वर्ष २०१४ में सत्ता सम्भालनेके बाद दक्षिण एशियाके बाहर अपनी पहली विदेश यात्राके लिए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने जापानको ही चुना था। तात्कालीन प्रधान मंत्री शिंजो आबेके साथ उनके व्यक्तिगत घनिष्ठï सम्बन्धसे पूरा विश्व परिचित है। वर्ष २०२१ के उत्तरार्धमें प्रधान मंत्रीके पदका दायित्व सम्भालनेके बाद यदि फुमियो किशिदाने ब्रिटेनके बाद अपनी पहली विदेश यात्राके लिए विश्वके सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारतका चुनाव किया तो यह अनायास ही नहीं है।
जापानी प्रधान मंत्रीका भारत दौरा इसलिए भी ध्यान आकृष्टï करता है कि एक तरफ जहां भारत अपनी आजादीका अमृत महोत्सव मना रहा है वहीं दूसरी तरफ भारत-जापानके कूटनीतिक सम्बन्धोंके ७० वर्ष भी इसी वर्ष पूरे हो रहे हैं। यद्यपि इन दोनों देशोंके बीच सम्बन्ध प्राचीन कालसे रहे हैं परन्तु आधुनिक युगमें स्वतंत्रताप्राप्तिके पश्चात्ï औपचारिक रूपसे भारत जापानके राजनयिक सम्बन्ध वर्ष १९५२ में स्थापित हुए थे। इन बीते ७० वर्षोंमें इन दोनों देशोंके सम्बन्धोंने ऊंचाइयोंकी नित नयी इबारत लिखी है। यूं तो भारत-जापानके सम्बन्ध प्राचीन कालसे ही रहे हैं परन्तु केन्द्रमें नरेन्द्र मोदीके सत्ता सम्भालनेके बाद इनमें नयी ऊर्जा एवं गर्मजोशीका अनुभव पूरा विश्व कर रहा है। जापानके पूर्व प्रधान मंत्री शिंजो आबेके बाद फुमियो किशिदाके साथ भी प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी वैसा ही प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाकर दोनों देशोंके सम्बन्धोंको नयी ऊंचाइयां देनेको कृत संकल्पित दिख रहे हैं। इसका अहसास जापानी प्रधान मंत्रीको भी है। उन्होंने कहा कि प्रधान मंत्रीका पद सम्भालनेके बाद ही वह यह तय कर चुके थे कि उनकी पहली विदेश यात्रा भारतकी ही होगी। भारतकी मीडियाके सामने आते ही उन्होंने नमस्ते बोलकर सबका अभिवादन किया एवं धन्यवाद बोलकर सबका आभार व्यक्त किया। यह भारतके प्रति उनकी नजदीकीको प्रदर्शित करता है। शिखर सम्मेलनके बाद मीडियाको संयुक्त रूपसे सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री मोदीने कहा कि ‘भारत-जापान भागीदारीको और गहन करना सिर्फ दोनों देशोंके लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इससे हिन्द प्रशान्त क्षेत्र और पूरे विश्वके स्तरपर भी शान्ति, समृद्धि एवं स्थिरताको प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने आगे कहा कि विश्व अब भी कोरोना और उसके दुष्प्रभावोंसे जूझ रहा है, वैश्विक अर्थव्यवस्थाके पटरीपर लौटनेकी प्रक्रियामें अब भी अड़चनें आ रही हैं तथा भू-राजनीतिक घटनाएं भी नयी चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं। देशमें समर्पित माल ढुलाई गलियारा और मुम्बई अहमदाबाद हाईस्पीड रेल जैसी महात्वाकांक्षी परियोजनाओंमें जापानका सहयोग उल्लेखनीय रहा है। हम इस योगदानके लिए आभारी है।Ó मुम्बई अहमदाबाद हाईस्पीड रेल प्रोजेक्टमें अच्छी प्रगति हो रही है। मोदीने भारत-जापान आर्थिक मंचको सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रगति, समृद्धि और साझेदारी भारत-जापान सम्बन्धोंके आधार हैं। हम भारतमें जापानी कम्पनियोंको हरसम्भव सहायता प्रदान करनेके लिए प्रतिबद्ध हैं। वहीं जापान अगले पांच वर्षोंमें भारतमें निवेशको बढ़ाकर पांच ट्रिलियन येन यानी ३.२ लाख करोड़ रुपये करेगा। जापानी प्रधान मंत्रीने भी भारतके साथ सम्बन्धोंपर खुशी जाहिर की और इसे और मजबूत बनानेपर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देशोंको खुल तथा मुक्त हिन्द-प्रशान्त क्षेत्रके लिए मिलकर काम करना चाहिए और इसके लिए अपने प्रयास बढ़ाने चाहिए।
इस दौरमें सतत शहरी विकास, साइबर सुरक्षा अपशिष्टï जल प्रबन्धनके साथ सांस्कृतिक एवं आर्थिक सहयोग बढ़ानेपर भी सहमति बनी थी। ऋण करारपर हस्ताक्षरके साथ आर्थिक डिजिटल सहयोग, पूर्वोत्तर क्षेत्रके विकासमें सहयोग और कौशल विकासपर भी एक राय बनी। जापानी सेबके भारत आयात एवं भारतीय आमोंके जापान निर्यातके लिए भी कार्ययोजनापर सहमति कायम हुई। दोनों देशोंके प्रधान मंत्रियोंने रूस-यूक्रेन युद्धपर चिन्ता व्यक्त करते हुए बातचीतसे हल निकालनेपर बल दिया। चीनके दादागिरीपर भी प्रकारान्तरसे चर्चा हुई। गौरतलब है कि चीनकी विस्तारवादी नीतियोंसे जापान एवं भारत दोनों ही चिन्तित एवं किसी हदतक पीड़ित है। भारत और जापान दोनोंके साथ उसके सीमा विवाद हैं। चीनकी विस्तारवादी प्रवृत्तिका ही यह परिणाम है कि उसकी थल एवं जल सीमाको लेकर भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, फिलीपींस, म्यांमार, भूटान, मंगोलिया आदि राष्टï्रोंके साथ विवाद रहा है। चीन इस बातको अच्छी तरहसे समझता है कि क्वाडके देशोंके निशानेपर वही है। भारत और जापान दोनों ही एशियामें चीनके बढ़ते प्रभावको लेकर चिन्तित रहे हैं। यही वजह है कि भारत-जापानकी निकटताको लेकर चीनकी बौखलाहट साफ नजर आती है। दूसरी तरफ भारत और जापान इस बातको अच्छी तरफसे समझते हैं कि एशिया ही नहीं पूरे विश्वकी भलाई इसीमें निहित है कि चीनके विस्तारवादी मंसूबेको ध्वस्त करनेके लिए उनका एक-दूसरेके साथ सहयोग करना अति आवश्यक है। भारत द्वारा परमाणु परीक्षणके मुद्देपर जापानने अवश्य अपना विरोध दर्ज कराया था। आतंकवादके विरोधके साथ संयुक्त राष्टï्र सुरक्षा परिषदके विस्तारको लेकर भी दोनों देशोंकी राय एकमत रही है। ज्ञातव्य है संयुक्त राष्टï्र सुरक्षा परिषदकी स्थायी सदस्यताके दोनों ही इच्छुक हैं और दोनों देशोंने एक-दूसरेकी उम्मीदवारीका समर्थन भी किया है। परमाणु हथियार मुक्त विश्वका स्वप्न दोनों देशोंने संजोये रखा है। इन परमाणु हथियारोंकी जितनी भयंकर त्रासदी जापानने झेली है उतनी विश्वके किसी अन्य देशने नहीं झेली है। लिहाजा उसकी दिली आकांक्षा यही है कि विश्वसे इन संहारक अस्त्रोंका खात्मा हो।
अन्तत: यह कहना समीचीन होगा कि चीनकी नापाक हरकतोंको लेकर भारत और जापान दोनों ही चिन्तित हैं। दोनों देश एशियाको बहुध्रवीय बनाये रखनेके पक्षधर हैं। अन्य पक्षोंके अतिरिक्त सामरिक एवं सैन्य क्षेत्रमें इनके बीच बढ़ता सहयोग उनके आपसी समझ और क्षेत्रकी शान्ति, स्थिरता एवं सन्तुलनको लेकर समझदारीभरी सोचका ही प्रतिबिम्ब है। दोनों देशोंके सम्बन्ध प्राचीनकालसे ही मजबूत रहे हैं। बौद्ध धर्मने भी इनके बीच सम्बन्धोंको प्रगाढ़ करनेमें बड़ी महत्वपूर्ण भूमिकाका निर्वहन किया है। भारतके स्वतंत्रता आन्दोलनके दौरान भी जापानकी शाही सेनाने सुभाषचन्द्र बोसकी आजाद हिन्द फौजको सहायता प्रदान कर हमारे पक्षको मजबूती प्रदान की थी। स्वतंत्र भारतमें भी जापानका हमारे लिए बड़ा सहयोग रहा है। सच यही है कि इन दोनों देशोंकी मित्रता न सिर्फ एशिया अपितु पूरे विश्वकी शान्ति एवं प्रगतिके लिए आवश्यक है।