नयी दिल्ली। संसद में शुक्रवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में खाद्य सब्सिडी के खर्च को असहनीय रूप से अधिक बताते हुए सुझाव दिया गया है कि 80 करोड़ लाभार्थियों को राशन की दुकानों से दिए जाने वाले अनाज के बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी की जानी चाहिए। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के अनुसार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से खाद्यान्नों को अत्यंत सस्ती पर दिया जाता है। इसके तहत राशन की दुकानों से तीन रुपये प्रति किलो चावल, दो रुपये प्रति किलो गेहूं और एक रुपये प्रति किलो की दर से मोटा अनाज का वितरण होता है। सर्वेक्षण में कहा गया है, हालांकि, खाद्य सुरक्षा के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता को देखते हुए खाद्य प्रबंधन की आर्थिक लागत को कम करना मुश्किल है, लेकिन बढ़ते खाद्य सब्सिडी बिल को कम करने के लिए केंद्रीय निर्गम मूल्य (सीआईपी) में संशोधन पर विचार करने की जरूरत है। सीआईपी वह रियायती दर है, जिस पर राशन की दुकानों के माध्यम से खाद्यान्न बांटा जाता है। सरकार ने कमजोर वर्गों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एनएफएसए के तहत सब्सिडी को जारी रखा है। इस कानून के 2013 में लागू होने के बाद से गेहूं और चावल की कीमतों में संशोधन नहीं किया गया है, हालांकि हर साल इसकी आर्थिक लागत में बढ़ोतरी हुई है। सरकार ने 2020 के बजट में पीडीएस और कल्याणकारी योजनाओं के जरिए खाद्य सब्सिडी के लिए 1,15,569.68 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। सर्वेक्षण के अनुसार, सरकार ने 2020-21 के दौरान एनएफएसए और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएम-जीकेएवाई) के तहत दो माध्यमों से खाद्यान्न का आवंटन किया।
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