- नई दिल्ली, । ट्विटर का अडि़यल रुख चौंकाने वाला है। फेसबुक, वाट्सएप जैसी दिग्गज कंपनियों ने अंतत: सरकार का निर्देश मानना शुरू कर दिया है लेकिन ट्विटर अभी भी टालमटोल कर रहा है। जबकि सरकार ने अपना सख्त रुख तो दिखाया है लेकिन कार्रवाई पर चुप्पी है। यह सवाल भी खड़ा होने लगा है कि क्या सरकार किसी दबाव में है। केंद्रीय आइटी व इलेक्ट्रानिक्स तथा दूर संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद इसे सीधे तौर पर खारिज करते हुए कहते हैं कि मोदी सरकार कभी किसी दबाव में काम नहीं करती है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, संसद की भावना और व्यापक मशविरे के बाद सरकार ने सिर्फ यह सुनिश्चित किया है कि इंटरनेट मीडिया कंपनियां देश के कानून के हिसाब से चलेंगी। नियम तो उन्हें मानने ही पड़ेंगे। दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से बातचीत का एक अंश
– सवाल : आपकी सरकार के सात साल के कार्यकाल में इंटरनेट मीडिया अपनी लीक पर चलता रहा। आपकी सरकार ने भी इसका पूरा उपयोग भी किया। एकबारगी सरकार अब जागी और लगाम लगाने की बात होने लगी। कोई तो खास कारण होगा?
जवाब : पहली बात यह है कि सरकार ने इंटरनेट मीडिया से जो अपेक्षा की है वह इसके उपयोग को लेकर नहीं दुरुपयोग को लेकर है। हमें इससे कोई आपत्ति नहीं कि अगर कोई आलोचना करता है, हमसे तीखे सवाल पूछता है। अहम यह है कि इसका किस तरह दुरुपयोग किया जाता है जिससे समाज, देश के लिए खतरा पैदा होता है। यह एकबारगी लाया गया कानून नहीं है। तीन साल से इसपर कवायद चल रही थी। व्यापक विचार विमर्श हुआ, संसद के अंदर सहमति बनी। संसद ने मुझसे वादा लिया था कि इंटरनेट मीडिया के दुरुपयोग के कारण जो खतरनाक स्थिति पैदा हो रही है उस पर रोक लगाई जाए। कांग्रेस और विपक्ष के लोग भी इसमें शामिल थे।
सवाल : लेकिन ये कंपनियां तो कोर्ट के दरवाजे पर खड़ी हैं?
जवाब : आपने अच्छा याद दिलाया। सुप्रीम कोर्ट के दो केस के बारे में बता दूं कि कैसे कोर्ट ने भी इन पर लगाम की बात कही थी। 2018 में प्रज्ज्वला केस में सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी कि इंटरनेट मीडिया पर महिलाओं की नग्न तस्वीरें दिखाते हैं। सरकार कुछ करे। 2019 में फेसबुक केस आया और तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट मीडिया पर कई ऐसी सामग्री परोसी और वितरित की जाती है जो आपत्तिजनक होती है। कुछ से हिंसा भड़क सकती है कुछ देश की संप्रुभता के लिए खतरनाक होती है। इंटरनेट मीडिया बड़ी मात्रा में अश्लील तस्वीरों का स्रोत बन गया है। ड्रग्स, हथियार जैसी खतरनाक सामग्री भी इन इंटरमीडियरी के जरिए खरीदी बेची जाती हैं। लिहाजा यह पता लगाना जरूरी है कि ऐसे मामलों की शुरूआत कहां से हुई। ऐसे मैसेज का स्रोत कौन है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के इसी निर्देश के अनुसार तो इन कंपनियों से सहयोग चाहती है। हमने बार-बार स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में भी सरकार को स्रोत की जानकारी चाहिए जो समाज और देश के लिए खतरा है।
सवाल : सरकार ने शिकायत निवारण आदि के लिए कंपनियों से भारत के अंदर अधिकारी नियुक्त करने को भी कहा था। कुछ कंपनियां मान गई थीं, क्या ट्विटर माना?
जवाब : ट्विटर ने अंतरिम व्यवस्था में एक वकील को नियुक्त किया है। हमारा कानून साफ है कि व्यक्ति कंपनी का आदमी होना चाहिए। आजकल तो राजनेता, जज, पत्रकार, डाक्टर हर कोई शिकार हो रहा है। इंटरनेट मीडिया पर कोई भी उन्हें बदनाम कर सकता है। शिकायत करने के लिए और उसका उपचार करने के लिए क्या अमेरिका जाना पड़ेगा।
सवाल : आपने कहा कि इंटरनेट मीडिया के दुरुपयोग पर लगाम लगाने के लिए संसद में सभी दलों की सहमति थी। लेकिन कांग्रेस तो इसे निजता और स्वतंत्रता का हनन बता रही है।
जवाब : मैं इतना कह सकता हूं कि कुछ लोग जो ट्विटर से राजनीति करते हैं, अब ट्विटर की राजनीति कर रहे हैं। हाथ कंगन को आरसी क्या। आप संसद की सारी कार्यवाही देख लें कि वहां इन दलों का क्या रुख था। लेकिन अब कुछ और कह रहे हैं। मैं उनसे पूछता हूं कि वे बताएं कि ट्विटर समेत दूसरी कंपनियों को भारत के संविधान का पालन करना चाहिए या नहीं। इन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह काम नहीं करने दिया जाएगा कि पैसा यहां कमाएं और कानून और संविधान विदेश का मानें।
सवाल : सरकार के निर्देश के अनुसार 25 मई की रात कानून के अनुसार नियुक्ति करने का वक्त खत्म हो गया है। फिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। क्या कोई दबाव है?
जवाब : सरकार किसी दबाव में नहीं है। मोदी सरकार कभी भी किसी दबाव में काम नहीं करती है। हम चाहते हैं कि इंटरमीडियरी को भी अवसर मिले। लोगों को भी इसका उपयोग करने का अवसर मिले। लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि कानून का पालन करना पड़ेगा वरना सरकार के पास कई विकल्प हैं।
सवाल : क्या विकल्प हैं?
जवाब: यह वक्त आने पर आपको पता चलेगा।
सवाल : और वक्त दिया जाएगा जैसी मांग की जा रही है?
जवाब : फरवरी में सरकार ने तीन महीने का वक्त दिया था, वह 25 मई को खत्म हो गया। सरकार ने ऐसा कोई बड़ा काम नहीं दिया था। यहां ग्राहकों की सुविधा के लिए, उनकी शिकायतों के निवारण के लिए कुछ कंपनियों को अपनी पसंद के लोग भारत में नियुक्त करने की बात कही गई थी। आखिर इस काम के लिए कितना वक्त चाहिए।