नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर असमंजस आखिरकार खत्म हो गया। परिवारवाद के भाजपा के तीर से घायल गांधी परिवार ने खुद को अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर कर लिया है और दो दशक से ज्यादा वक्त के बाद फिर से किसी बाहरी के हाथ पार्टी की कमान होगी। यह लगभग तय है कि अध्यक्ष पद के लिए लड़ाई पार्टी के उम्मीदवार अशोक गहलोत और पार्टी नीतियों को लेकर अक्सर मुखर रहने वाले सांसद शशि थरूर के बीच होगी।
राहुल अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर
हालांकि, गहलोत के ही अध्यक्ष बनने की संभावना है। उन्होंने परोक्ष रूप से अध्यक्ष के तौर पर संदेश देना शुरू भी कर दिया और कहा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि केवल गांधी परिवार ही नहीं बल्कि देश के लाखों करोड़ों कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उनमें विश्वास है। बुधवार को पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने एक प्रेसवार्ता में स्पष्ट किया कि राहुल अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हैं।
भारत जोड़ो यात्रा में ही मौजूद रहेंगे राहुल
उन्होंने कहा, ’24-30 सितंबर के बीच अध्यक्ष पद के लिए नामांकन है और वह प्रत्यक्ष तौर पर पेश होकर ही दिल्ली में करना पड़ेगा। जूम पर यह नहीं किया जा सकता है। जबकि राहुल गांधी इस बीच भारत जोड़ो यात्रा में ही मौजूद रहेंगे। वह 23 सितंबर को अपनी मां से मिलने दिल्ली जा सकते हैं लेकिन उसी शाम वापस आ जाएंगे।’ गुरुवार को पार्टी अध्यक्ष पद चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करेगी।
परिवारवाद के ठप्पे से बाहर आने की कवायद
जाहिर है कि पार्टी में लंबी चर्चा के बाद यह फैसला हुआ कि पार्टी को परिवारवाद के ठप्पे से बाहर आना ही होगा। जिस तरह विभिन्न राज्यों की प्रदेश इकाई से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए प्रस्ताव पारित हो रहे थे उससे असंतुष्ट खेमे को यह हमला करने का भी मौका मिलता कि सब कुछ पहले से तय था। लिहाजा यह तय हुआ कि राहुल पार्टी का चेहरा बने रहें और संगठन की कमान दूसरे के हाथ दी जाए।
पूर्व पीएम नरसिंह राव के वक्त सोनिया गांधी रहीं निष्क्रिय
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल की सक्रियता का यह संदेश होगा कि वह नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं और वक्त आने पर सही जगह नेतृत्व दिया जाएगा। यानी राहुल ने केवल संगठन के नेतृत्व से दूरी बनाई है। यह संदेश सबके लिए होगा। यह संदेश इसलिए भी अहम है क्योंकि पूर्व पार्टी अध्यक्ष और पूर्व पीएम नरसिंह राव के वक्त सोनिया गांधी निष्क्रिय रही थीं। राहुल वैसी गलती नहीं दोहराएंगे।
सोनिया गांधी से मिले गहलोत
इसमें शक की गुंजाइश नहीं कि गहलोत गांधी परिवार और पार्टी के उम्मीदवार होंगे। एक दिन पहले राजस्थान में विधायकों की बैठक बुलाकर उन्होंने इसका परोक्ष संकेत दे दिया था। बुधवार को सोनिया गांधी से मुलाकात कर उन्होंने निर्देश भी ले लिया और भरोसा भी दिया कि वह सबको विश्वास में लेकर ही आगे बढ़ेंगे। बाहर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, पार्टी मुझे जो निर्देश देगी वह करूंगा। पद मेरे लिए मायने नहीं रखता।
राजस्थान का मोह नहीं छोड़ पा रहे गहलोत
यह पूछे जाने पर कि क्या अध्यक्ष पद और राजस्थान के मुख्यमंत्री पद दोनों पर बने रहना उदयपुर संकल्प का उल्लंघन नहीं होगा, उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी राज्य में मंत्री है तो उस पद पर बने रहते हुए अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। जाहिर है कि गहलोत अभी भी राजस्थान का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं लेकिन उन्होंने कहा, ‘समय बताएगा कि मैं कहां रहूंगा। मेरे जहां बने रहने से पार्टी का लाभ होगा मैं वहीं रहूंगा।’
मिस्त्री से थरूर मिले
शशि थरूर ने भी बुधवार को चुनाव का प्रभार देख रहे मधुसूदन मिस्त्री से मुलाकात कर चुनाव के बारे में जानकारी ली। उन्होंने बताया कि उनका प्रतिनिधि नामांकन पत्र लेकर आएगा। स्पष्ट है कि थरूर चुनाव से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं और दो दशक से ज्यादा वक्त के बाद अध्यक्ष पद को लेकर स्पर्धा होगी। इससे पहले सीताराम केसरी के वक्त तीन उम्मीदवार मैदान में थे।