नई दिल्ली राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी विकल्प बने रहने का दम भरती रही कांग्रेस को पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने बीते आठ साल में अब तक का सबसे ब़़डा सियासी झटका दिया है। भारी अंतर से पंजाब की सत्ता गंवाने के साथ ही उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा जैसे राज्यों में लगातार दूसरी बार भाजपा के हाथों मात खाने से साफ है कि पार्टी लोगों का विश्वास हासिल करने की दौ़़ड में निरंतर कमजोर प़़डती जा रही है और उसका राष्ट्रीय नेतृत्व भी अपील खोने लगा है।
करारी शिकस्त से कम नहीं ये हार
पांच राज्यों के ताजा चुनावी परिणाम कांग्रेस के लिए सियासी रूप से पिछले दो लोकसभा चुनाव की करारी शिकस्त से कम नहीं है। 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी हार से यह लगभग साफ हो गया था कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व में वोट हासिल करने की सियासी अपील अब नहीं रही। शायद इस बात का अहसास ही था कि राहुल गांधी ने 2019 के चुनाव नतीजों के तत्काल बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, मगर पार्टी ने तब भी गांधी परिवार के करिश्मे में अपनी उम्मीद नहीं छो़ड़ी थी। पंजाब से लेकर उत्तराखंड और गोवा से लेकर मणिपुर तक में कांग्रेस सत्ता की होड़ में सीधे शामिल थी, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व की सियासी अपील का कोई असर नहीं दिखा। इससे पहले केरल में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था।