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कांग्रेस में बदलाव को लेकर सियासी ‘शो-डाउन’ की तैयारी,


 नई दिल्ली: पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की दुर्दशा के बाद संगठन में व्यापक बदलाव और सुधार के लिए पार्टी नेतृत्व पर दबाव गहराने लगा है। पार्टी की हालत को बेहद चिंताजनक मान रहे असंतुष्ट नेताओं यानी समूह-23 ने इस मसले पर अब निर्णायक कदम बढ़ाने की रणनीति पर शुक्रवार को लंबी मंत्रणा की। इसका लब्बोलुआब यह था कि कांग्रेस के लगातार सिकुड़ते आधार और संगठनात्मक विफलताओं पर बार-बार पर्दा डालकर बच निकलने की पार्टी हाईकमान की रणनीति अब स्वीकार्य नहीं होगी। संकेत हैं कि तत्काल ईमानदार पहल नहीं हुई तो नेताओं की यह बढ़ती बेचैनी पार्टी में सियासी ‘शो-डाउन’ तक की नौबत पैदा कर सकती है।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में कांग्रेस की करारी हार से बढ़ रही हताशा के संकेत असंतुष्ट खेमे के नेताओं ने नतीजे आने के बाद गुरुवार से ही देने शुरू कर दिए थे। शुक्रवार देर शाम समूह 23 के कुछ नेताओं की गुलाम नबी आजाद के घर बैठक हुई। इसमें कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और मनीष तिवारी शामिल थे। समझा जाता है कि ताजा हार से पार्टी में गहराए संकट को देखते हुए इस बैठक में कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव तत्काल कराने और इसके लिए एआइसीसी का आपात अधिवेशन बुलाने की मांग उठाने की रणनीति पर चर्चा हुई। पुख्ता संकेत है कि समूह 23 के नेता कांग्रेस में व्यापक बदलाव के लिए अब लंबा इंतजार करने के पक्ष में नहीं है और जल्द ही हाईकमान से इस दिशा में निर्णायक कदम उठाने की मांग करने की तैयारी में हैं।

अब नहीं, तो बहुत देर हो जाएगी

असंतुष्ट खेमे के एक वरिष्ठ नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा, ‘अब जल्द कदम उठाने के लिए पहल नहीं की जाएगी तो बहुत देर हो जाएगी और मामला ठंडा पड़ते ही नेतृत्व को बचकर निकलने का मौका मिल जाएगा। इसलिए चाहे पार्टी में राजनीतिक शो-डाउन की स्थिति ही क्यों न बने अब हमें कुछ न कुछ निर्णायक दिशा में बढ़ना ही होगा।’

नेतृत्व से मिलता है सिर्फ भरोसा

असंतुष्ट खेमे का कहना है कि पार्टी के गिरते ग्राफ को थामने के लिए नेतृत्व ने गंभीर और व्यापक आत्मावलोकन करने से परहेज किया है, जबकि 2019 के आम चुनाव में हार के बाद से लगातार इसको लेकर आवाज उठ रही है। अगस्त 2020 में समूह 23 के नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सुधारों के लिए सुझाव भी दिए थे। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाकर तब संगठनात्मक सुधार के साथ पार्टी को जनता के बीच ले जाने की रीति-नीति पर आगे बढ़ने का भरोसा दिया गया मगर इस पर अमल नहीं हुआ।

समिति बनती है, पर होता कुछ नहीं

पिछले साल केरल, असम, बंगाल और पुडुचेरी में करारी हार की समीक्षा के लिए महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण, सलमान खुर्शीद, विसेंट पाला, ज्योतिमणि और मनीष तिवारी की समिति बनाई गई। मगर जिस तरह 2014 की हार के बाद एके एंटनी समिति की रिपोर्ट की सिफारिशें अभी तक सामने नहीं आईं हैं कुछ यही हाल चव्हाण समिति की रिपोर्ट का भी है।

हालात से अनजान नहीं हाईकमान

हार पर पार्टी में अंदरूनी संग्राम की इस आहट को हाईकमान भी भांप रहा है और तभी नेतृत्व के भरोसेमंद नेता भी जवाबी तैयारी की भूमिका बनाते नजर आ रहे हैं। असंतुष्ट खेमे के नेता गुलाम नबी आजाद के पांच राज्यों में कांग्रेस की हार पर कलेजा छलनी होने के बयान ने अंदरूनी हलचल मचाई है तो शशि थरूर की संगठनात्मक नेतृत्व में व्यापक सुधार और बदलाव की मांग की गूंज भी कम नहीं है।