- नई दिल्ली। लंबे समय से देश में समान नागरिक संहिता (कामन सिविल कोड) की मांग करने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अब इस मुद्दे पर देशव्यापी बहस चाहता है। आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता ने कामन सिविल कोड के लिए कोई निश्चित समयसीमा तय किए जाने से इन्कार करते हुए कहा कि इसके तहत कई सिविल कानूनों में बदलाव की जरूरत है, जो एक साथ नहीं हो सकता। सरकार धीरे-धीरे इस दिशा में आगे बढ़ रही है, लेकिन समानता की जरूरत वाले सिविल कानूनों की पहचान और उसके लाभ के बारे में आम जनता के बीच जागरूकता भी जरूरी है।
आरएसएस के वरिष्ठ नेता के अनुसार, तत्काल तीन तलाक कानून और देश में लड़कियों की शादी की उम्र लड़कों के समान 21 साल करने का प्रस्तावित कानून कामन सिविल कोड की दिशा में अहम कदम है। इसी तरह से अनुच्छेद-370 निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव को दूर किया जाना भी इसी से जुड़ा है। इससे साफ है कि सरकार संविधान में दिए गए नीति निर्देश के तहत कामन सिविल कोड की दिशा में काम कर रही है। इससे जुड़े मुद्दों पर राष्ट्रीय बहस होने से जनता भी जागरूक होगी और सरकार पर इसके लिए दबाव भी बढ़ेगा।
उधर, उत्तर प्रदेश चुनावों में भले ही काशी और मथुरा के मुद्दे को चुनावी रंग देने की कोशिश हुई हो, लेकिन आरएसएस फिलहाल इन दोनों मुद्दों से दूरी बनाए रखने के पक्ष में है। वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, इन दोनों मुद्दों पर स्थानीय स्तर पर कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है। जिस तरह राम मंदिर को कानूनी रास्ते से हासिल किया गया, उसी तरह इन्हें भी सिर्फ कानूनी रास्तों से हासिल किया जा सकता है।
राम मंदिर का मुद्दा आरएसएस की ओर से पूरे देश में जोर-शोर से उठाने, लेकिन काशी और मथुरा से पीछे हटने की वजह पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि राम मंदिर के लिए आम जनता की लड़ाई लंबे समय से चल रही थी। लेकिन राजनीतिक वजहों से उसे कुचलने की कोशिश के बाद आरएसएस को इसे अपना मुद्दा बनाना पड़ा था। उन्होंने उम्मीद जताई कि काशी और मथुरा के मुद्दे का समाधान राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना शांतिपूर्ण तरीके से हो सकेगा।