पटना

कितने बदल गये गुरुजी!


शिक्षक दिवस पर विशेष

-डॉ. लक्ष्मीकान्त सजल-

पटना। गुरुजी कितने बदल गये हैं। समय के साथ बदलते ही जा रहे हैं। मानो, बदलाव उनकी नियति बन गयी हो। गुरुजी में बदलाव आया है शैक्षिक नीतियों की वजह से। जैसे-जैसे शिक्षा की नीतियां बदली हैं, वैसे-वैसे गुरुजी भी बदलते गये हैं।

पौराणिक काल से लेकर राजे-रजवाड़ों के समय तक गुरुकुल की परंपरा थी। उस परंपरा का गुरु जी न केवल हिस्सा थे, अपितु वह परंपरा उन्हीं से थी। ब्रिटिश शासनकाल में छिटपुट स्कूल खुले। छिटपुट स्कूल मिशनरी के भी खुले। बावजूद, सूबे में स्कूल उगलियों पर थे। ब्रिटिश शासनकाल में जब गांधी पहली बार चंपारण पहुंचे, तो उन्हें वहां स्कूल की जरूरत महसूस हुई। और, गांधी ने चंपारण में तीन स्कूल खोले। एक में कस्तूरबा, तो दूसरे में मुंबई के इंजीनियर गोखले और तीसरे में गांधी के एक बेटे शिक्षक बने। बापू ने अपनी शिक्षा व्यवस्था को स्वावलंबन से जोड़ा। बापू के स्कूल ही ‘बुनियादी शिक्षा व्यवस्था’ के आधार बने।

आजादी की लड़ाई खत्म हुई, तो स्वतंत्रता सेनानी गुरुजी बन बच्चों को शिक्षित करने में लग गये। जब बच्चे पढऩे लगे, तो पढ़ाई वाली जगह को समाज ने स्कूल में बदलना शुरू किया। पढ़ाने वाले शिक्षकों के घर-परिवार की जरूरतों को पूरा करने का जिम्मा समाज ने ही उठाया। गणेश चतुर्थी  के दिन तो गुरुजी हर उस घर में पूजे जाते, जिनके बच्चे उनसे पढ़ रहे होते। हर परिवार अपने सामथ्र्य के अनुसार गुरुजी को दान देता। गुरुजी समाज में पूजनीय बन गये। लेकिन, स्कूलों के अधिग्रहण के बाद गुरुजी बदल गये।

सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की तरह ही उन्हें वेतनमान और दूसरी सुविधाएं मिलीं। इससे मध्यम वर्ग में गुरुजी की सशक्त सामाजिक छवि उभरी। लेकिन, मध्याह्न भोजन योजना लागू होने के बाद प्राइमरी-मिडिल स्कूलों के गुरुजी की छवि फिर बदल गयी। हालांकि, मध्याह्न भोजन योजना केंद्र की शैक्षिक नीतियों में इस उद्येश्य से शामिल की गयी कि जिन घरों में चूल्हे जलने की नौबत नहीं थी, उनके बच्चों को दिन का भोजन मिलेगा और  इसी बहाने बच्चे स्कूली शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल होंगे। पर, मध्याह्न भोजन पकाने और परोसने की व्यवस्था का हिस्सा बनाये जाने की वजह से वे ‘खिचड़ी वाले स्कूल के गुरुजी’ भी कहे जाने लगे।

प्रारंभिक शिक्षा की ही बात करें, तो बिहार लोक सेवा आयोग से बहाल शिक्षक ‘मेधावी शिक्षक’ कहे जाने लगे, लेकिन सरकारी कार्यालयों में शुरू हुई उनके प्रतिनियोजन की परंपरा में एक बार फिर गुरुजी बदल गये। फिर, शिक्षामित्र की नीति आयी। तो, गुरुजी ‘शिक्षामित्र’ भी कहे जाने लगे। उसके पहले 1986 में लागू हुई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इंटरमीडिएट की शिक्षा व्यवस्था विश्वविद्यालयों से अलग हो गयी। इससे गुरुजी एक और बदले हुए रूप में सामने आये। बदला हुआ उनका रूप ‘इंटरमीडिएट वाले गुरु जी’ का था। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद ‘आठवीं कक्षा’ हाई स्कूल से अलग होकर प्रारंभिक शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बन गयी। हाई स्कूल की पढ़ाई नौवीं कक्षा से हो गयी। लेकिन, कालान्तर में अब सारे हाई स्कूल ‘प्लस-टू’ हो गये हंै।

लेकिन, उसके पहले नीति बदलने से शिक्षकों में फिर बदलाव आया। शिक्षक नियत वेतन पर बहाल होने लगे। ऐसे शिक्षकों के पदनाम भी बदल गये। इनकी पहचान अपने-अपने नियोजन इकाई के ‘नियोजित शिक्षक’ की बनी। ऐसे शिक्षकों में फिर एक बदलाव तब आया, जब उन्हें नियत वेतन के बदले वेतनमान मिला। हालांकि, वेतनमान पुराना वाला नहीं है। नीति फिर बदली। तो, ऐसे शिक्षकों की पहचान ‘नियोजित शिक्षक’ वाली नहीं रही। ये ‘पंचायत शिक्षक’, ‘प्रखंड शिक्षक’, नगर माध्यमिक शिक्षक’, ‘जिला परिषद माध्यमिक शिक्षक’, ‘नगर उच्च माध्यमिक शिक्षक’ एवं ‘जिला परिषद उच्च माध्यमिक शिक्षक’ से जाने, जाने लगे।

बहरहाल, अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 लागू हो रही है। तो, भला यह नीति गुरुजी को कैसे नहीं बदलेगी। सो, गुरुजी एक बार फिर बदलने वाले हैं। और, आगे न जाने कैसे-कैसे बदलाव से गुजरेंगे गुरुजी!