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किसानों से बोले PM मोदी-पराली जलाने से खेतों को होता है नुकसान,


  • नेशनल डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को प्राकृतिक खेती, खाद्य प्रसंस्करण (natural farming, food processing) और कृषि आधारित ऊर्जा विषय (agriculture based energy) पर तीन दिन के एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कते हुए कहा कि बीज से लेकर मिट्टी तक सबका इलाज आप प्राकृतिक तरीके से कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती खेती में न तो खाद पर खर्च करना है और ना ही कीटनाशक पर। इसमें सिंचाई की आवश्यकता भी कम होती है और बाढ़-सूखे से निपटने में ये सक्षम होती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे पहले खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं उससे पहले बड़े कदम उठाने का ये सही समय है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। पीएम मोदी ने कहा कि अगर किसान प्राकृतिक खेती को अपनाएं तो इससे उनको काफी लाभ हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह सही है कि केमिकल और फर्टिलाइजर ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगा। खेती में उपयोग होने वाले कीटनाशक और केमिकल फर्टिलाइजर हमें बड़ी मात्रा में इंपोर्ट करना पड़ता है। इस वजह से खेती की लागत बढ़ती है, खर्च बढ़ता है और गरीब की रसोई भी महंगी होती है।

बीज से लेकर बाज़ार तक, किसान की आय को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक अनेक कदम उठाए गए हैं। मिट्टी की जांच से लेकर सैकड़ों नए बीज तक, पीएम किसान सम्मान निधि से लेकर लागत का डेढ़ गुणा एमएसपी तक, सिंचाई के सशक्त नेटवर्क से लेकर किसान रेल तक, अनेक कदम उठाए हैं। बता दें कि गुजरात के आणंद में यह सम्मेलन तीन दिन तक चलेगा। इस सम्मेल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी उपस्थित रहे।

पीएम मोदी के संबोधन के प्रमुख अंश

  • एक भ्रम ये भी पैदा हो गया है कि बिना केमिकल के फसल अच्छी नहीं होगी। जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। पहले केमिकल नहीं होते थे, लेकिन फसल अच्छी होती थी। मानवता के विकास का, इतिहास इसका साक्षी है।
  • नया सीखने के साथ हमें उन गलतियों को भुलाना भी पड़ेगा जो खेती के तौर-तरीकों में आ गई है।जानकार ये बताते हैं कि खेत में आग लगाने से धरती अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जाती है।
  • कृषि से जुड़े हमारे प्राचीन ज्ञान  को हमें न सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है, बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब में तराशने की भी जरूरत है। इस दिशा में हमें नए सिरे से शोध करने होंगे, प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक फ्रेम में डालना होगा।
  • चाहे कम सिंचाई वाली जमीन हो या फिर अधिक पानी वाली भूमि, प्राकृतिक खेती से किसान साल में कई फसलें ले सकता है। यही नहीं, जो गेहूं, धान, दाल या जो भी खेत से कचरा निकलता है, जो पराली निकलती है, उसका भी इसमें सद्उपयोग किया जाता है।
  • आज दुनिया जितना आधुनिक हो रही है, उतना ही ‘back to basic’ की ओर बढ़ रही है। इस Back to basic का मतलब क्या है? इसका मतलब है अपनी जड़ों से जुड़ना! इस बात को आप सब किसान साथियों से बेहतर कौन समझता है? हम जितना जड़ों को सींचते हैं, उतना ही पौधे का विकास होता है।